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________________ जैनविद्या 25 समाधि यह शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। वे हैं सम + आधि । इनमें आधि का अर्थ है मानसिक पीड़ा, वेदना, चिन्ता । सम का अर्थ है समता भाव सुख और दुःख में समान भाव। व्याधि का अर्थ है शारीरिक कष्ट, देह - चिन्ता । आधिव्याधियों में चित्त स्थिर रखना अथवा पंचपरमेष्ठियों का स्मरण करना । महापुराणकार ने लिखा भी है। यत्सम्यक्परिणामेषु चित्तस्याधानमञ्जसा । स समाधिरिति ज्ञेयः स्मृतिर्वा परमेष्ठिनाम् ।। 21.226।। ते समाधिं समासाद्य कृत्वा देहविसर्जनम् । वासुदेवादितां यान्ति निदानकृतदोषतः । । 2. 189।। समाधिपूर्वक शरीर त्यागकर निदान के दोष से नारायण आदि पद की प्राप्ति होती है। पद्मपुराण में कहा भी है - भवानामेवमष्टानामन्तः कृत्वानुवर्तनम् । रत्नत्रयस्य निर्ग्रन्थो भूत्वा सिद्धिं समश्नुते ।। 14.204।। समाधिपूर्वक मरण करनेवाला जीव अधिक से अधिक आठ भवों में रत्नत्रय का पालनकर अन्त में निर्ग्रन्थ हो सिद्धिपद पाता है। पद्मपुराणकार ने लिखा भी है 80 — इन उल्लेखों के अनुसार भगवती आराधना के रचयिता ने समाधि के साधक में निम्न गुण अपेक्षित बताये हैं योग्य हो, साधुलिंग स्वीकृत किया हो, ज्ञानभावना में तत्पर हो, शास्त्र-निरूपित विनयवान हो और रत्नत्रय में मन संलग्न योग्यस्य गृहीतलिंगस्य, ज्ञानभावनोद्यतस्य । ज्ञाननिरूपते विनये वर्तमानस्य, रत्नत्रये मानसः इति ।। पृ. 173 चित्त का अशुभ परिणामों के प्रवाह से रहित और वशवर्ती होना भी आवश्यक है क्योंकि ऐसा समाहित चित्त ही बिना थके निरतिचार चारित्र के भार को धारण करता है। कहा भी है। - चित्तं समाहिदं जस्स होज्जवज्जिदविसोत्तियं वसियं । सो वहदि णिरतिचारं सामण्णधुरं अपरिसंतो ।।134 ।।
SR No.524770
Book TitleJain Vidya 25
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size6 MB
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