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________________ जैनविद्या 25 (3) इंगिणीमरण - इंगिनी शब्देन इंगितमात्मनो भव्यते स्वाभिप्रायानुसारेण स्थित्वा प्रवर्त्यमानं मरणं इंगिणीमरणं (पृ. 65) अर्थात् इंगिणी शब्द से आत्मा का संकेत कहा जाता है। अतः अपने अभिप्राय के अनुसार रहकर होनेवाले मरण 'इंगिणीमरण' हैं। इसकी विधि में कहा गया है कि इंगिनीमरण की साधना का निश्चय कर साधु तप की भावना करे तथा शरीर और कषायों को कृश करे (गा. 2026)। रत्नत्रय में लगे दोषों की आलोचना करे तथा आचार्य को सभी दोषों से अवगत करा दे। मुनिसंघ से निकलकर एकाकी आश्रय ले (गा. 2027-2029)। आहार का विकल्प त्याग दे। परीषह जीते। धर्मध्यान करे। (गा. 2033-34)। त्रिगुप्ति का पालन करे। कषाय जीते (गा. 2044)। ऋद्धियों का सेवन नहीं करे (गा. 2052)। ऐसा जीव मरकर वैमानिकदेव होता है (गा. 2055)। भक्त-प्रत्याख्यान मरण के दो भेद कहे हैं - सविचार भक्त-प्रत्याख्यान मरण और अविचार भक्त-प्रत्याख्यान मरण। सहसा मरण उपस्थित होने पर अविचार तथा सहसा मरण नहीं होने पर सविचार भक्त-प्रत्याख्यान मरण होता है (गाथा 64, पृ. 104)। ___ भक्त-प्रत्याख्यान मरण के लिए निम्न परिस्थितियाँ कही हैं - दुष्प्रसाध्यव्याधि, श्रामण्य के प्रतिकूल वृद्धावस्था, देव-मनुष्य-तिर्यंच कृत उपसर्ग, अनुकूल या प्रतिकूल चारित्र-विनाशक बंधु, मित्र, शत्रु, भयंकर दुर्भिक्ष, भयंकर अटवी में भ्रमित, नेत्र-श्रोत्र दुर्बल हों, जंघाबल से हीन, विहार करने में असमर्थ तथा अन्य प्रबल कारण उपस्थित होने पर विरत अथवा अविरत भक्तप्रत्याख्यान मरण के योग्य होता है, किन्तु जिसका चारित्र अतिचाररहित पाला जा रहा है, समाधिमरण कराने में सहायक निर्यापक सुलभ हैं, दुर्भिक्ष का भय नहीं है, तब वह भय के नहीं रहने पर भक्तप्रत्याख्यान मरण के योग्य नहीं है। ऐसे में वह यदि मरण की प्रार्थना करता है तो मुनिधर्म से विरत ही होता है (गाथा 70 से 75)। ___ मरण के सत्रह भेदों में तेरह प्रकार के मरण का स्वरूप-कथन करने के पश्चात् शेष चार प्रकार के मरण को पंडितमरण के भेद बताकर उन्हें समझाया गया है। इस प्रकार मरण-प्रक्रिया समझाकर जीव को मरण सुधारकर आत्मकल्याण का उपाय भी दर्शाया गया है। वह उपाय है समाधि।
SR No.524770
Book TitleJain Vidya 25
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size6 MB
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