SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनविद्या 25 पंचेन्द्रिय, तीन बल, उच्छवास और आयु ये द्रव्य - प्राण हैं (पृ. 49 )। शरीर का दूसरा नाम भव है। यह भव आयुकर्म के द्वारा धारण किया जाता हैदेहो भवोत्ति वुच्चदि धारिज्जइ आउगेण य भवो सो। पृ. 49 — जीव सत्रह प्रकार से मरण करता है। उनके नाम हैं। (1) आवीचिमरण, (2) तद्भवमरण, (3) अवधिमरण, (4) आदि - अन्तमरण, (5) बालमरण, (6) पंडितमरण, (7) ओसण्णमरण ( अवसन्नमरण), (8) बालपंडितमरण, ( 9 ) ससल्लमरण ( सशल्यमरण ), ( 10 ) बलायमरण ( पलायमरण ), ( 11 ) वसट्टमरण ( दशार्तमरण), (12) विप्पाणमरण (विप्राणमरण ), ( 13 ) गिद्धपुट्ठमरण ( गृध्रपृष्ठमरण), (14) भक्तप्रत्याख्यानमरण, ( 15 ) प्रायोपगमनमरण, ( 16 ) इंगिनीमरण और (17) केवलिमरण (पृ. 51 ) । 74 भगवती - आराधना के रचयिता आचार्य श्री शिवार्य की जीव - हितैषी भावना ने उन्हें मरण - संज्ञाओं के पश्चात् उनके स्वरूप को समझाने के लिए भी प्रेरित किया है। 'अन्त भला सो सब भला' इस उक्ति के अनुसार उन्होंने जीवों की कर्म-स्थिति को ध्यान में रखते हुए मरण-संबंधी गुण और दोषों को स्पष्ट किया है। उनका चिन्तन सराहनीय रहा है क्योंकि जाने बिना वस्तु के गुण-ग्रहण और दोष त्यागे नहीं जाते। कहा भी है " बिन जानें ते दोष - गुनन को कैसे तजिये - गहिये”। अब हम मरण के भेद - स्वरूपों को जानें- समझें (1) आवीचिमरण कर्मपुद्गलों के रस का नाम अनुभव है। यह हानि - वृद्धि के रूप से वीचि अर्थात् जल की लहरों के समान छह प्रकार से घटता-बढ़ता रहता है। कर्मों की इस स्थिति का प्रलय हो जाना, अन्त हो जाना अपेक्षित है। इसी प्रक्रिया का नाम है आवीचिमरण — "कर्मपुद्गलानां रसः अनुभवः । स च परमाणुषु षोढा वृद्धिहानिरूपेण वीचय इव क्रमेणावस्थितस्य प्रलयोऽनु-भवावीचिमरणं" (पृ. 53 ) । (2) तद्भवमरण 'पूर्वभवविगमनं तद्भवमरणं' अर्थात् पूर्ववर्ती भवों का विनाश तदुद्भवमरण है। यह संसारी जीव करता आ रहा है, इसी का अभाव जीवन का लक्ष्य है (पृ. 53 )। - (3) अवधिमरण वर्तमान जैसा मरण प्राप्त करना अवधिमरण है। अर्थात् वर्तमान पर्याय में जैसा मरण प्राप्त करता है वैसा ही मरण अगली पर्याय
SR No.524770
Book TitleJain Vidya 25
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy