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________________ जैनविद्या 25 ___आचार्य शिवार्य ने (गाथा 26 से 30 में) सत्रह प्रकार के मरणों का उल्लेख करते हुए उनमें विशिष्ट पाँच भेदों का वर्णन किया है - 1. पण्डितपण्डित मरण, 2. पण्डित मरण, 3. बाल पण्डित मरण, 4. बाल मरण, 5. बाल-बाल मरण। इनमें प्रारम्भ के तीन प्रशस्त हैं और शेष दो अप्रशस्त। पंडिदपंडिदमरणं पंडिदयं बालपंडिदं चेव। बाल-मरणं चउत्थं पंचमयं बालबालं च।।26।। पंडिदपंडिदमरणं च पंडिदं बाल पडिदं चेव। एदाणि तिण्णि मरणाणि जिणा णिच्चं पसंसंति।।27।। - उक्त मरणों को स्पष्ट करते हुए बताया है कि 'पंडित-पंडितमरणं' क्षीण कषाय 14वें गुणस्थानवर्ती अयोग केवलियों के होता है। उनका निर्वाणगमन पंडित-पंडितमरण है। ‘पंडितमरण' चारित्र के धारक सकल संयमी साधुओं के होता है। 'बाल पंडितमरण' विरत देशव्रती श्रावक के होता है। 'बाल मरण' अविरत सम्यग्दृष्टि के होता है। 'बाल-बाल मरण' मिथ्यादृष्टि जीवों के होता है। पण्डित मरण के तीन भेद (जो चारित्रधारक साधुओं के होते हैं) बताये हैं - 1. भक्त प्रत्याख्यान, 2. इंगिनी और 3. प्रायोपगमन। चालीस अधिकारों में इनके उपभेदों सहित विस्तार से वर्णन किया है (गाथा 28, 29 व 30)। इस विषय पर इतना विस्तृत और व्यवस्थित विवेचन अन्यत्र नहीं है। वस्तुतः आचार्य शिवार्य-कृत 'भगवती आराधना' आत्म-साधना की अनुपम प्रक्रिया का अनुपम ग्रंथ है। . आचार्य नेमिचन्द्र कृत गोम्मटसार के कर्मकाण्ड (गाथा 60, 61) के अनुसार - जिस शरीर-त्याग में अन्नपान को धीरे-धीरे कम करते हुए छोड़ा जाता है उसे 'भक्त प्रत्याख्यान' कहा जाता है। इसका काल-प्रमाण न्यूनतम अन्तर्मुहूर्त और अधिकतम बारह वर्ष है। इसमें आराधक अपनी आत्मा के अतिरिक्त समस्त पर-वस्तुओं से राग-द्वेषादि छोड़ता है और अपने शरीर की परिचर्या स्वयं के साथ दूसरों से भी कराता है। ___ 'इंगिनीमरण' में क्षपक अपने शरीर की परिचर्या स्वयं करता है, अन्य से नहीं कराता। जिस शरीर-त्याग में सल्लेखनाधारी अपनी परिचर्या न स्वयं करे और न दूसरों से करावे वह 'प्रायोपगमन मरण' कहलाता है। उनका संहनन प्रबल होता है।
SR No.524770
Book TitleJain Vidya 25
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size6 MB
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