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________________ जैनविद्या 25 हुए थे। सामान्यतः ‘पाणितलभोजी' दिगम्बर मुनि का विशेषण माना जाता है, किन्तु कतिपय अन्तर्साक्ष्यों और बहिर्साक्ष्यों के आधार पर पं. नाथूराम प्रेमी ने अपने 'जैन साहित्य और इतिहास' में 'यापनीयों का साहित्य' शीर्षक लेख में 'शिवार्य' को यापनीय सम्प्रदाय ( दिगम्बर और श्वेताम्बर के मध्य की धारा) का माना है। वस्तुतः शिवार्य उस युग के हैं जब दिगम्बर - श्वेताम्बर विभेद होने पर उनके मध्य समन्वय के लिए प्रयत्नशील जैन साधुओं में एक स्वतंत्र विचारधारा जन्म ले रही थी। श्रवणबेलगोल की सिद्धरबस्ती में स्तम्भ लेख, जो क्रमांक 2 पर उद्धृत है, में उल्लिखित समन्तभद्र के शिष्य 'शिवकोटि' और अय्यपार्य के जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदय' से क्रमांक 3 पर उद्धृत श्लोक में समन्तभद्र के शिष्य रूप में उल्लिखित 'शिवकोटि' और 'शिवायन' उपर्युक्त 'भगवती आराधना' के कर्ता 'शिवाय' से सर्वथा भिन्न हैं। डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन ने The Jaina Sources of the History of Ancient India में उक्त शिवकोटि को स्वामी समन्तभद्र ( समय लगभग 120 - 185 ई.) का राजवंशी शिष्य बताया है जिन्होंने, कहा जाता है, अपने गुरु की सलाह से अपने भाई शिवायन के साथ संन्यास लेकर मुनि दीक्षा ले ली थी। यह भी कहा जाता है कि उक्त 'शिवकोटि' ने आचार्य उमास्वामि के 'तत्वार्थसूत्र' पर 'रत्नमाला' नामक टीका रची थी। उन्होंने उक्त 'शिवकोटि' के जैनधर्म के प्रति अनुराग रखनेवाले कदम्बवंशी द्वितीय शासक शिवस्कन्धश्री से, जिसने अपने पुत्र श्रीकण्ठ के पक्ष में राजसिंहासन का परित्याग किया था, अभिन्न होने की संभावना व्यक्त की है। कदाचित् क्रमांक 4 व 5 पर उद्धृत श्लोकों में भी इन्हीं 'शिवकोटि ' का ससम्मान स्मरण किया गया है। • 4 * यह लेख जैन संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर से प्रकाशित संस्करण पर आधारित है। 1. जिनसेन कृत आदिपुराणम्, प्रथमं पर्व, श्लोक सं. 491 2. जैन - शिलालेख संग्रह, प्रथम भाग में संख्या 105 पर उद्धृत श्रवणबेलगोल विन्ध्य गिरि में सिद्धरवस्ती के निकट शक संवत् 1320 के एक स्तम्भ - लेख का अंश । 3. अय्यपार्य रचित जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदय के अन्त भाग में श्लोक 5। 4. भ. श्रुतसागर, यशोधरचरित्र, आदिभाग, श्लोक सं. 41 5. पं. गोविन्द, पुरुषार्थानुशासन, आदिभाग, श्लोक सं. 191
SR No.524770
Book TitleJain Vidya 25
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size6 MB
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