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जैनविद्या 25
__वस्तुतः ‘आराधना' अपरनाम ‘भगवती आराधना' जिसे 'मूलाराधना' भी कहते हैं, के कर्ता, जैसा कि उक्त ग्रन्थ की गाथा संख्या 2159-60 में स्वयं उसके रचनाकार ने लिखा है - 'पाणितलभोजी शिवार्य हैं जिन्होंने अपने गुरु आर्य जिननन्दिगणि, आर्य सर्वगुप्तगणि और आर्य मित्रनन्दिगणि के चरणों में (मूल) सूत्रों और उनके अर्थों का सम्यक् ज्ञान प्राप्त किया था तथा पूर्वाचार्यों द्वारा निबद्ध ग्रन्थों के आधार पर इस ‘आराधना' ग्रन्थ की स्वशक्ति अनुसार रचना की थी।' अर्द्धमागधी मिश्रित शौरसेनी प्राकृत में निबद्ध 2164 गाथाओं वाले इस आराधना ग्रन्थ पर प्राकृत-संस्कृत आदि विभिन्न भाषाओं में अनेक टीकाएँ समय-समय पर रची गईं। इस समय उपलब्ध सबसे प्राचीन टीका अपराजित सूरि अपरनाम श्री विजय (समय लगभग 700 ई.) की संस्कृत में रचित 'विजयोदया टीका' मानी जाती है जिसमें कुछ पूर्ववर्ती टीकाओं के भी उल्लेख हैं।
आराधना' की गाथा संख्या 1539 में आचार्य भद्रबाहु का घोर पीड़ा के बावजूद शान्तिपूर्ण मरण का जिस प्रकार वर्णन किया गया उससे विद्वानों का अनुमान है कि वह आचार्य भद्रबाहु द्वितीय (समय लगभग 37-14 ईसापूर्व) के प्रायः समकालीन रहे होंगे। 'श्रुतावतार' में आचार्य भद्रबाहु द्वितीय के उपरान्त जिन चार आरातीय यतियों का उल्लेख है उनमें एक शिवदत्त हैं। आचार्य कुन्दकुन्द (समय लगभग 8 ई. पू.-44 ई.) ने अपने ‘भावपाहुड' में एक 'शिवभूति' नामक मुनि का तथा एक अन्य स्थान पर 'शिवकुमार' नामक भावश्रमण का ससम्मान उल्लेख किया है। श्वेताम्बर ग्रन्थ 'मूलभाष्य' और 'कल्पसूत्र-स्थविरावली' में बोटिक संघ (दिगम्बर सम्प्रदाय) के मूल संस्थापक के रूप में किन्हीं 'शिवभूति' का उल्लेख किया गया है।
प्रो. हीरालाल जैन ने नागपुर यूनिवर्सिटी जर्नल नं. 1 में 'शिवभूति और शिवार्य' विषयक अपने लेख में ‘भगवती आराधना' के कर्ता शिवार्य तथा श्वेताम्बर ग्रंथों में उल्लिखित शिवभूति को अभिन्न सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन 'प्रेमी-अभिनन्दन-ग्रन्थ' में प्रकाशित अपने लेख ‘भगवती आराधना के कर्ता शिवार्य' में इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि आचार्य का मूल नाम 'शिव' था, जिसके साथ 'भूति', 'कोटि', 'कुमार', 'दत्त' आदि शब्द उल्लेखकर्ताओं ने स्वरुचि अनुसार अथवा भ्रमवश जोड़ दिये हैं, और यह कि ये शिवार्य भद्रबाहु द्वितीय के पश्चात् तथा आचार्य कुन्दकुन्द से पूर्व, सन् ईस्वी के प्रारम्भ के लगभग