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________________ जैनविद्या 24 शब्दार्थ मात्र दिया है और यत्र-तत्र आवश्यकतानुसार कुछ विशेष कथन भी किया है। इन टीकाओं में प्रभाचन्द्र ने अपने गुरु पद्मनन्दि का उल्लेख नहीं किया है। श्रुत मुनि ने अपनी 'प्राकृतभाव त्रिभंगी' की प्रशस्ति में अभयचन्द्र और प्रभाचन्द्र को 'शास्त्र-गुरु' बताया है। प्रशस्ति के अंत में प्रभाचन्द्र मुनि को ‘सारत्रय निपुण' (प्रवचनसार, समयसार और पंचास्तिकाय), 'शुद्धात्मरत', 'विरहित परभाव' आदि कहा है। डॉ. उपाध्ये इन्हीं प्रभाचन्द्र को उक्त तीनों टीकाओं का कर्ता बतलाते हैं। इन टीकाओं की व्याख्या शैली एक-जैसी है। इनमें दिया गया एक भी उद्धरण ऐसा नहीं है जो प्रभाचन्द्र के परवर्ती समय का हो। इस दृष्टि से इन्हें दार्शनिक प्रभाचन्द्र की कृतियाँ मानने में कोई विरोध नहीं है। 8. महापुराण टिप्पण - महाकवि पुष्पदन्त ने अपभ्रंश भाषा में महापुराण (आदिपुराण और उत्तरपुराण) की रचना सन् 965 ई. में की थी। आचार्य प्रभाचन्द्र ने तत्वार्थवृति के समान महापुराण पर भी एक टिप्पण ग्रन्थ रचा। यह उनकी सर्वतोमुखी प्रतिभा और गुण-ग्राहकता का परिचायक है। महापुराण के इस टिप्पण की श्लोक संख्या 3300 में बतलाई गई है। इसका आदि मंगलाचरण निम्न प्रकार है - प्रणम्यवीरं विबुधेन्द्र संस्तुतं, निरस्तदोष वृषभं महोदयम् । पदार्थ संदिग्धजन-प्रबोधकम्, महापुराणस्य करोमि टिप्पणम् ।। इति श्रीप्रभाचन्द्रविरचित आदिपुराण-टिप्पणकम् पंचास श्लोकहीनं सहस्त्रद्वय परिमाणं परिसमाप्ता ।। 'महापुराण टिप्पण' की रचना श्री जयसिंहदेव के शासन-काल में हुई, जैसा कि उत्तरपुराण के अंतिम पुष्पिका वाक्य से सिद्ध होता है। 9. क्रियाकलाप टीका - ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन, मुम्बई से प्राप्त इसकी हस्तलिखित प्रति की अन्तिम प्रशस्ति से स्पष्ट होता है जिन प्रभाचन्द्र ने 'क्रियाकलाप टीका' रची है वे पद्मनन्दि सैद्धान्तिक के शिष्य थे। न्यायकुमुदचन्द्र आदि के कर्ता प्रभाचन्द्र भी पद्मनन्दि सैद्धान्तिक के ही शिष्य थे, अतः 'क्रियाकलाप टीका' के कर्ता प्रभाचन्द्र ही हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं रह जाता। प्रशस्ति-श्लोकों की शैली भी प्रमेयकमलमार्तण्ड' आदि की प्रशस्तियों से मिलती-जुलती है। __10. आराधना गद्य कथाकोष - संस्कृत भाषा की 'गद्य कथाकोष' आचार्य प्रभाचन्द्र की स्वतंत्र कृति है जिसमें 89 कथाएँ हैं। इस कथाकोष के अन्त में
SR No.524769
Book TitleJain Vidya 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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