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________________ जैनविद्या 24 11 किया है, किन्तु प्रमेयकमल मार्तण्ड की प्रशस्ति के निम्नलिखित पद्यों में उसके रचयिता पण्डित प्रभाचन्द्र ने श्री माणिक्यनन्दि की गुरुरूप में वंदना करते हुए अपने को श्री पद्मनन्दि सैद्धान्तिक का शिष्य और रत्ननन्दि के चरणों में रत बताया है - गुरुः श्रीनन्दिमाणिक्यो नन्दिताशेषसजनः । नन्दतादुरितैकान्तरजा जैनमतार्णवः ।।३।। श्रीपद्मनन्दिसैद्धान्तशिष्योऽनेकगुणालयः । प्रभाचन्द्रश्चिरं जीयात् रत्ननन्दिपदेरतः ।।4।। और प्रशस्ति के श्लोक 1 में उक्त ग्रंथ के प्रणयन हेतु माणिक्यनन्दि का आभार निम्नवत व्यक्त किया है - गम्भीरं निखिलार्थगोचरमलं शिष्यप्रबोधप्रदं यद्वयक्तं पदमद्वितीयमखिलं माणिक्यनन्दिप्रभोः । तद्वयाख्यातमदो यथावगमतः किश्चिन्मयालेशतः स्थेयाच्छुद्धधियां मनोरतिगहे चन्द्रार्कतारावधि ।।1।। और पुष्पिका वाक्य में ग्रन्थ-रचना के समय, स्थान और विषय को निम्नवत निर्दिष्ट किया है - ___श्री भोजदेवराज्ये श्रीमद्धारानिवासिना परापरपरमेष्ठिपदप्रणामार्जितामलपुण्यनिराकृतनिखिलमलकलङ्केन श्रीमत्प्रभाचन्द्रपण्डितेन निखिलप्रमाणप्रमेयस्वरूपोद्योतपरीक्षामुखपदमिदं विवृतमिति।" इससे स्पष्ट है कि 'प्रमेयकमलमार्तण्ड' की रचना प्रभाचन्द्र पण्डित ने धारानगरी में निवास करते हुए श्री भोजदेव के राज्य में समस्त प्रमाण-प्रमेय के स्वरूप को समझानेवाले ग्रन्थ ‘परीक्षामुख' की टीका-स्वरूप की थी। ‘परीक्षामुख' उक्त माणिक्यनन्दि (लगभग 950-1050 ई.) का न्याय विषयक सूत्र-ग्रन्थ है। प्रभाचन्द्र कृत उक्त टीका 12,000 श्लोक-प्रमाण बताई जाती है। कालान्तर में चारुकीर्ति ने उस पर अपना भाष्य ‘प्रमेयरत्नमालालंकार' नाम से रचा और उसमें प्रभाचन्द्र सूरि और उनकी उक्त कृति तथा माणिक्यनन्दि का सादर स्मरण निम्नवत किया -
SR No.524769
Book TitleJain Vidya 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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