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________________ जैनविद्या 24 इसका भावार्थ है कि श्री धाराधीश भोजराज के मुकुट में जड़ी मणियों की रश्मियों की कान्ति से जिनके चरण-कमलों की श्री कस्तूरी - चन्दन लेप के समान भासित होती थी (अर्थात् जिनके चरणों में मणिजटित मुकुटधारी धारा- नरेश भोजराज नमस्कार करते थे), जो न्यायरूपी कमलसमूह को मण्डित करनेवाले दिनमणि (मार्त्तण्ड) थे (अर्थात् जो प्रमेयकमल मार्तण्ड के रचयिता थे), जो शब्दाब्ज (शब्दरूपी कमलों) को विकसित करनेवाले रोदोमणि (भास्कर) थे ( अर्थात् जिन्होंने शब्दाम्भोजभास्कर की रचना की थी) और जो पण्डित - पुण्डरीकों (पण्डितरूपी कमलों) को प्रफुल्लित करनेवाले तरणि (सूर्य) थे ऐसे श्रीमान् प्रभाचन्द्र चिरजीवी हों अर्थात् उनका यश अक्षुण्ण रहे। श्री चतुर्मुख देवों के शिष्य, प्रवादियों द्वारा अविजित, रुद्रवादि गजों पर अंकुश रखनेवाले श्री प्रभाचन्द्र पण्डित थे। 10 धारानरेश भोजराज का राज्यकाल सन् 1010 से 1053 ई. तक रहा था। अतः ऊपर स्तम्भलेख में उल्लिखित पण्डित प्रभाचन्द्र ने 'प्रमेयकमल मार्त्तण्ड' और 'शब्दाम्भोज भास्कर' कृतियों का प्रणयन इस अवधि में किसी समय किया होगा, ऐसा अनुमान सहज ही किया जा सकता है। उक्त चन्द्रगिरि पर्वत पर महनवमी मण्डप में लगे चतुर्मुख स्तम्भ पर शक संवत् 1085 (1163 ई.) का एक लेख उत्कीर्ण है जो जैन शिलालेख संग्रह (प्रथम भाग) में लेख सं. 39 (63) और 40 (64) के रूप में पृष्ठ 21-30 पर समाहित है । उस स्तम्भ के पश्चिमी मुख पर उत्कीर्ण लेख के श्लोक संख्या 13 - 16 से विदित होता है कि मूलसंघान्तर्गत नन्दिगण के प्रभेदरूप देशीगण में एक प्रसिद्ध मुनिराज गोल्लाचार्य हुए थे और उनके शिष्य अविद्धकर्ण (जिनके कान नहीं बिंधे हुए थे), कौमारदेवव्रती (जो कुमारावस्था से ही व्रती थे) और ज्ञानविधि ( ज्ञान के सागर थे ) ऐसे पद्मनन्दि सैद्धान्तिक थे। और उन पद्मनन्दि सैद्धान्तिक के शिष्य सिद्धान्त - सागर - पारंगत कुलभूषण नाम से यति तथा उनके सधर्मा श्री कुण्डकुन्दान्वय के मुनिराज पण्डितवर प्रभाचन्द्र थे जो 'शब्दाम्भोरुहभास्कर' के कर्ता प्रथिततर्क ग्रन्थकार थे। उक्त स्तम्भलेख में आगे उक्त कुलभूषण मुनि की शिष्यपरम्परा आदि का तो उल्लेख है, किन्तु प्रभाचन्द्र की परम्परा का नहीं । तत्त्वार्थवृत्तिपद, न्यायकुमुदचन्द्र और क्रियाकलाप टीका की प्रशस्तियों में भी उनके कर्ता प्रभाचन्द्र ने अपने को श्री पद्मनन्दि सैद्धान्तिक का शिष्य सूचित
SR No.524769
Book TitleJain Vidya 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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