SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन विद्या 24 की अनुपलब्धि से 'असत्ता' साध्य है, जैसे सर्वज्ञ है और खर - विषाण नहीं है । " यहाँ पर 'सर्वज्ञ' और 'खर - विषाण' दोनों ही विकल्पसिद्ध धर्मी हैं । सर्वज्ञ में 'उसका कोई सुनिश्चित बाधक प्रमाण नहीं पाया जाता है' इस हेतु से उसकी 'सत्ता' की सिद्धि की गई है और खर-विषाण में 'प्राप्त योग्य होकर भी अनुपलब्ध है' इस हेतु से उसकी 'असत्ता' (नास्तित्व) की सिद्धि की गई है। अतः कहा जा सकता है कि विकल्पसिद्ध धर्मी में 'सत्ता' और 'असत्ता' दोनों ही साध्य हैं । और, प्रमाण तथा विकल्प इन दोनों से सिद्ध धर्मी को उभयसिद्ध धर्मी कहते हैं, जैसे- शब्द परिणामी है" । यहाँ पर नियत दिग्देशवर्ती वर्तमान कालवाले शब्द की परिणमनशीलता तो प्रत्यक्ष प्रमाण से सिद्ध है किन्तु अनियत दिग्देशवर्ती वर्तमान, भूत और भविष्यत् कालवाले शब्दों की परिणमनशीलता विकल्प से सिद्ध है। अतः शब्द को उभयसिद्ध धर्मी माना गया है। ज्ञातव्य है, प्रमाणसिद्ध और उभयसिद्ध धर्मी में 'साध्य धर्म विशिष्टता' (साध्य से विशिष्टता अथवा धर्म विशिष्ट धर्मी) अर्थात् 'संयुक्तता' साध्य होता है । 94 पक्षाभास ध्यातव्य है, अनुमान करते समय यह निश्चित कर लेना चाहिए कि जो अनुमान किया जा रहा है उसका 'पक्ष' या 'धर्मी' वास्तविक है अथवा नहीं। अनेक बार जो 'पक्ष' नहीं होता है उसे 'पक्ष' या 'धर्मी' मान लिया जाता है जिसके कारण होनेवाला अनुमान ज्ञान अयथार्थ होता है । किसी अनुमान ज्ञान के यथार्थ होने के लिए यह आवश्यक है कि उसका 'पक्ष' वास्तविक हो, और पक्ष की वास्तविकता इस बात पर निर्भर करती है कि उस पक्ष में जिस साध्य की सिद्धि की जा रही है वह यथार्थ में साध्य है अथवा नहीं। जहाँ साध्य यथार्थ होता है वहाँ पक्ष भी वास्तविक होता है और जहाँ साध्य अयथार्थ होता है वहाँ पक्ष भी अवास्तविक होता है, अर्थात् जहाँ साध्य अयथार्थ होता है वहाँ पक्ष नहीं 'पक्षाभास' होता है। किसी पक्ष - विशेष में अनिष्ट, बाधित और सिद्ध पदार्थ को साध्य बनाना या सिद्ध करना 'पक्षाभास' है। 58 पक्षाभास तीन प्रकार का है (1) अनिष्ट पक्षाभास, ( 2 ) बाधित पक्षाभास और (3) सिद्ध पक्षाभास । - (1) अनिष्ट पक्षाभास जिस पक्ष में अनिष्टपना हो अर्थात् अनिष्ट साध्य हो तब उसे 'अनिष्ट पक्षाभास' कहते हैं, जैसे - ' शब्द नित्य है', यहाँ पक्ष 'शब्द' है जिसमें के अनुसार शब्द नित्य नहीं है बल्कि अनित्य है। अनिष्टपना है; क्योंकि जैनों (2) बाधित पक्षाभास किसी पक्ष - विशेष में प्रमाण, लोक और स्व-वचन से बाधित साध्य को सिद्ध करना 'बाधित पक्षाभास' कहलाता है । बाधित पक्षाभास पाँच प्रकार का है" - (i) प्रत्यक्ष बाधित, (ii) अनुमान बाधित, (iii) आगम बाधित, -
SR No.524769
Book TitleJain Vidya 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy