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________________ 87 जैनविद्या - 22-23 ____ अपनी शक्ति के अनुसार भगवान की पूजा-सामग्री को लेकर श्रावक धर्माचरण सम्बन्धी उत्साह के साथ 'नि:सही' शब्द का उच्चारण करता हुआ उस मन्दिर में प्रवेश करे। जिनेन्द्र भगवान को नमस्कार कर उसके आस्रव को करने वाली स्तुतियों को पढ़ता हुआ तीन बार प्रदक्षिणा करे । अरहंत भगवान् की पूजा करके देव-वन्दना करे । पूजा आदि कार्यों की निवृत्ति हो जाने के बाद शान्तिभक्ति बोलकर अपनी शक्ति के अनुसार भोगोपभोग सामग्री का नियम करके 'भगवान पुनः दर्शन मिले', 'समाधिमरण हो' ऐसी प्रार्थना करके जाने के लिए प्रभु को नमस्कार करे। __ वह श्रावक विधिपूर्वक स्वाध्याय करे। अरहन्त भगवान के वचनों का व्याख्यान करनेवालों को तथा पढ़नेवालों को बार-बार प्रोत्साहित करे । विपत्ति से आक्रान्त दीन जनों को विपत्ति से छुड़ावे, जिनगृह के मध्य हँसी, शृंगारादि चेष्टा को, चित्त को कलुषित करने वाली कथाओं को, कलह को, निद्रा को, थूकने को तथा चार प्रकार के आहार को छोड़े। पूजादि क्रियाओं के अनन्तर हिताहितविचारक श्रावक द्रव्यादि के उपार्जन योग्य दुकानादि में जाकर अर्थोपार्जन में नियुक्त पुरुषों की देखभाल करे अथवा धर्म के अविरुद्ध स्वत: व्यवसाय करे। ___ वह श्रावक पुरुषार्थ के निष्फल, अल्पफल तथा विपरीत फलवाला हो जाने पर भी न विषाद करे तथा लाभ हो जाने पर हर्षित भी न हो। वह श्रावक, प्राणियों को परस्पर लड़ाना, फूलों को तोड़ना, जलक्रीड़ा, झूला में झुलाना आदि क्रिया को छोड़ दे तथा इनके समान हिंसा की कारणभूत दूसरी क्रियाओं को भी छोड़ दे। मध्याह्नकाल में अपने हृदय में भगवान को विराजमान करके अपनी शक्ति अनुसार भगवान का ध्यान करे। अपनी शक्ति और भक्ति के अनुसार मुनि आर्यिकादिक पात्रों को तथा अपने आश्रितों को सन्तुष्ट करके अपनी प्रकृति के अविरुद्ध भोजन करे। व्याधि की उत्पत्ति न होने देने में तथा उत्पन्न हो गई हो तो उसके नाश करने के लिए प्रयत्न करे; क्योंकि वह व्याधि ही संयम का घात करनेवाली है। भोजन करने के बाद श्रावक थोड़ी देर विश्रांति लेकर गुरु, सहपाठी और अपना चाहनेवालों के साथ जिनागम के रहस्य का विनयपूर्वक विचार करे। ___ सन्ध्याकालीन आवश्यक कर्मों को करके देव और गुरु का स्मरण करके वह श्रावक उचित समय में थोड़ी देर शयन करे तथा अपनी शक्ति अनुसार मैथुन को छोड़ दे। वह श्रावक रात्रि में निद्रा के भङ्ग हो जाने पर फिर वैराग्य के द्वारा तत्क्षण मन को संस्कृत
SR No.524768
Book TitleJain Vidya 22 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2001
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size9 MB
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