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________________ जैनविद्या - 22-23 65 मन्दिर-वेदी-प्रतिष्ठा-कलशारोहण विधि में कलशों की संख्या कम से कम नौ और अधिक से अधिक 81 निर्दिष्ट है । घटों के मुखों को नारियल तथा पीले कपड़े से आवृतकर तथा पचरंगी धागे से बाँधकर सौभाग्यवती स्त्रियों द्वारा जलाशय ले जाया जाता है। वहाँ एक बड़े नंद्यावर्त पर स्वस्तिकयुक्त इक्यासी खण्डों में उन्हें रखा जाता है। पश्चात् नौ देवताओं की पूजा की जाती है । लवंग चूर्ण से मिला जल उन कलशों में भरा जाता है। इस जल में जलयंत्र का जल भी मिला दिया जाता है । नवदेवता पूजा के पश्चात् तीर्थमंडल पूजा की जाती है। समय हो तो 81 कलशों को मंत्रित किया जाता है अन्यथा सामूहिक कलश-पूजन कर कलश यथावत् वापिस ले जाये जाते हैं। अन्य अध्यायों में पाँचों कल्याणकों की विधियाँ तथा उनके मंत्र दिये गये हैं। प्रतिष्ठाचार्यों के लिए यह ग्रन्थ बहुत उपयोगी समझ में आता है। 1. प्रतिष्ठासारोद्धार, जैन ग्रंथ उद्धारक कार्यालय, खत्तर गली, हौदावाड़ी, गिरगांव, मुम्बई, वी.नि.सं. 2443, प्रस्तावना, पृष्ठ 3। - जैनविद्या संस्थान श्री महावीरजी श्री महावीरजी (करौली) राज.
SR No.524768
Book TitleJain Vidya 22 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2001
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size9 MB
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