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________________ 57 जैनविद्या - 22-23 सुभटवर्मा के सिंहासनारूढ़ होने पर वे वहाँ से 10 मील दूर नलगच्छ ग्राम में बस गये थे। उनके पिता का नाम सल्लक्षण (सलखण) और माता का नाम श्री रत्नी था। धारा में पण्डित महावीर ने उन्हें व्याकरण पढ़ाया था। उनके शिष्यों में पण्डित देवचन्द्र, मुनि वादीन्द्र, विशाल कीर्ति, भट्टारक देवभद्र, विनयभद्र, मदनकीर्ति (उपाध्याय), उदयसेन मुनि उल्लेखनीय हैं । नलकच्छपुर में उन्होंने 35 वर्ष व्यतीत किये थे। __ उनकी प्रशंसा करनेवालों में मुख्यतः मंत्री विल्हण, मुनि उदयसेन जिन्होंने उनके शास्त्रों को प्रामाणिक बताकर उनका अभिनन्दन किया है, उपाध्याय मदनकीर्ति जैसे शिष्यों ने उनकी स्तुति भी की है। उनके और भी ग्रन्थों में क्रियाकलाप, व्याख्यालंकार टीका, वाग्भट संहिता, भव्यकुमुदचन्द्रिका, इष्टोपदेश टीका, ज्ञानदीपिका, अनगार धर्मामृत, मूलाराधना, सागारधर्मामृत, भूपाल चतुविंशतिका टीका, जिनयज्ञ काव्य, प्रतिष्ठापाठ, सहस्रनाम स्तव, रत्नत्रय विधान टीकादि संस्कृत ग्रन्थ हैं। ' पण्डित आशाधर की पत्नी का नाम सरस्वती था जो सील एवं सुशिक्षिता थीं। उनके पुत्र का नाम छाहड़ था। यह परिचय उन्होंने स्वपरिचय रूप में सागार धर्मामृत में दिया है व्याघेरबालवरवंशसरोज हंसः काव्यामृतौघरस पान सुतृप्तगात्रः। सल्लक्षणस्य तनयो नयविश्वचक्षु राशाधरो विजयतां कलिकालिदासः॥ उदयसेन ने उन्हें 'नयविश्वचक्षु' एवं 'कलिकालिदास' कहा है। मदनकीर्ति यतिपति ने उन्हें 'प्रज्ञापुञ्ज' कहा है। स्वयं गृहस्थ होने पर भी अनेक मुनि, भट्टारकों ने उनका शिष्यत्व स्वीकार किया है, यथा - यो द्राग्व्याकरणाब्धिपारमनयच्छु श्रुषमाणानकान्। षटतर्कीपरमास्त्रमप्य न यतः प्रत्यर्थिनः केऽक्षिपन्॥ चेरुः केऽस्खलितं न येन जिनवाग्दीपं पथि ग्राहितोः। पीत्वा काव्य सुधां यतश्च रसिकेष्वापुः प्रतिष्ठां न के॥ उन्होंने वादीन्द्र विशालकीर्ति को षड्दर्शनन्याय, देवचन्द्र को धर्मशास्त्र एवं मदनोपाध्याय को काव्य में पारंगत कर दिया था। मंत्री विद्यापति विल्हण ने पण्डित आशाधर की रचनाओं पर विमुग्ध हो लिखा था - आशाधरत्वंमयि विद्धि सिद्धं निसर्ग सौन्दर्यमजर्यमार्य। सरस्वती पुत्रतया यदेतदर्थे परं वाच्यमयं प्रपञ्च ॥
SR No.524768
Book TitleJain Vidya 22 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2001
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size9 MB
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