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________________ 46 जैनविद्या - 22-23 अर्हन्त प्रतिमा की प्रतिष्ठा विधि, गर्भकल्याणक की क्रियाओं के अनन्तर जन्मकल्याणक, तपकल्याणक, नेत्रोन्मीलन, केवलज्ञानकल्याणक और निर्वाणकल्याणक की विधियों का वर्णन आया है। पंचम अध्याय में अभिषेक विधि, विसर्जन विधि, जिनालय प्रदक्षिणा, पुण्याहवाचन, ध्वजारोहण-विधि एवं प्रतिष्ठाफल का कथन आया है। षष्ठ अध्याय में सिद्धप्रतिमा की प्रतिष्ठा विधि बृहदसिद्धचक्र और लघु सिद्धचक्र का उद्धार, आचार्यप्रतिष्ठा-विधि, श्रुतदेवता प्रतिष्ठा विधि एवं यक्षादि की प्रतिष्ठाविधि का वर्णन है। अध्यायान्त में ग्रंथकर्ता की प्रशस्ति अंकित है। परिशिष्ट में श्रुतपूजा, गुरुपूजा आदि संगृहीत हैं। 15. त्रिषष्टिस्मृतिशास्त्र सटीक यह ग्रन्थ माणिकचन्द्र ग्रंथमाला में मराठी अनुवाद सहित प्रकाशित हो चुका है। इस ग्रंथ में तिरेसठ शलाका पुरुषों का संक्षिप्त जीवन परिचय आया है । चालीस पद्यों में तीर्थंकर ऋषभदेव का, सात पद्यों में अजितनाथ का, तीन पद्यों में सम्भवनाथ का, तीन पद्यों में अभिनन्दननाथ का, तीन में सुमतिनाथ का, तीन में पद्मप्रभ का, तीन में सुपार्श्वजिन का, दस में चन्द्रप्रभ का, तीन में पुष्पदन्त का, चार में शीतलनाथ का, दस में श्रेयांस तीर्थंकर का, नौ में वासुपूज्य का, सोलह में विमलनाथ का, दस में अनन्तनाथ का, सत्रह में धर्मनाथ का, इक्कीस में शान्तिनाथ का, चार में कुंथनाथ का, छब्बीस में अरहनाथ का, चौदह में मल्लिनाथ का और ग्यारह में मुनिसुव्रत का जीवनवृत्त वर्णित है। इसी संदर्भ में रामलक्ष्मण की कथा भी इक्यासी पद्यों में वर्णित है। तदनन्तर इक्कीस पद्यों में कृष्ण-बलराम, ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती आदि के जीवनवृत्त आये हैं । नेमिनाथ का जीवनवृत्त भी एक सौ एक पद्यों में श्रीकृष्ण आदि के साथ वर्णित है। अनन्तर बत्तीस पद्यों में पार्श्वनाथ का जीवन अंकित किया गया है। पश्चात् बावन पद्यों में महावीर पुराण का अंकन है। तीर्थंकरों के काल में होने वाले चक्रवर्ती, नारायण, प्रतिनारायण आदि का भी कथन आया है। ग्रंथान्त में पन्द्रह पद्यों में प्रशस्ति अंकित है। ग्रंथ-रचनाकाल का निर्देश करते हुए लिखा है - नलकच्छपुरे श्रीमन्नेमिचैत्यालयेऽसिधत् ग्रन्थोऽयं द्वि न वद्धयेक विमार्कसमात्यये॥ अर्थात् वि.सं. 1291 में इस ग्रन्थ की रचना की है। 16. नित्यमहोद्योत यह स्नान शास्त्र या जिनाभिषेक बहुत पहले पण्डित पन्नालालजी सोनी द्वारा सम्पादित 'अभिषेक पाठ संग्रह' में श्री श्रुतसागर सूरि की संस्कृत टीका सहित प्रकाशित हो चुका है।
SR No.524768
Book TitleJain Vidya 22 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2001
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size9 MB
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