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जैनविद्या - 22-23 10. अमरकोश टीका ___ यह सुप्रसिद्ध अमरकोश की टीका है। इसमें रचनाकार ने गूढ़ विषय को सरल ढंग से प्रस्तुत किया है। 11. क्रियाकलाप ____ मुम्बई के ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन में इस ग्रन्थ की एक प्रति है जिसमें बावन पत्र हैं और जो एक हजार नौ सौ छियत्तर श्लोकप्रमाण है। यह ग्रन्थ प्रभाचन्द्राचार्य के 'क्रियाकलाप' के ढंग का है। ग्रंथान्त में प्रशस्ति नहीं है । आरम्भ के दो पद्य इसप्रकार हैं -
जिनेन्द्रमुन्मूलित कर्मबन्धं प्रणम्य सन्मार्ग कृत स्वरूपं। अनन्तबोधादिभवं गुणौघं क्रियाकलापं प्रकटं प्रवक्ष्ये॥1॥ योगिध्यानैक गम्यः परम विशददृग्विश्वरूपः सतच्च। स्वान्तस्थे मैव साध्यं तदमलमतयस्तत्पदध्यान बीजं॥ चित्तस्थैर्ये विधातुं तदनवगुण ग्राम गाढ़ामरागं।
तत्पूजाकर्म कर्मच्छि दुरमति यथासूत्रमासूत्रयन्तु ॥2॥ 12. काव्यालंकार टीका ____ अलंकार शास्त्र से सुप्रसिद्ध आचार्य रुद्रट के काव्यालंकार पर यह टीका लिखी गई है। - 13. सहस्रनामस्तवन सटीक
पण्डित आशाधर का सहस्रनाम स्तोत्र सर्वत्र सुलभ है। | 14. जिनयज्ञकल्पटीका
'जिनयज्ञकल्प' का दूसरा नाम प्रतिष्ठासारोद्धार है । यह पण्डित मनोहरलालजी शास्त्री द्वारा सं. 1972 में प्रकाशित हो चुका है । इस ग्रंथ को पण्डित आशाधरजी ने अपने धर्मामृत शास्त्र का एक अंग बतलाया है। प्रतिष्ठा विधि का सम्यक् प्रतिपादन करने के लिए पण्डितप्रवर आशाधर ने छह अध्यायों में जिनयज्ञकल्प-विधि को समाप्त किया है। प्रथम अध्याय में मन्दिर के योग्यभूमि, मूर्तिनिर्माण के लिए शुभ पाषाण, प्रतिष्ठायोग्य मूर्ति, प्रतिष्ठाचार्य, दीक्षागुरु यजमान, मण्डपविधि, जलयात्रा, यागमण्डल-उद्धार आदि विषयों का वर्णन है। द्वितीय अध्याय में तीर्थजल लाने की विधि, पंचपरमेष्ठि पूजा, अन्य देव पूजा, जिनयज्ञादि विधि, सकलीकरण क्रिया, यज्ञदीक्षा विधि, मण्डप प्रतिष्ठा विधि और वेदी प्रतिष्ठा विधि वर्णित हैं। तृतीय अध्याय में यागमण्डल की पूजा-विधि और यागमण्डल में पूज्य देवों का कथन किया है। चतुर्थ अध्याय में प्रतिष्ठेय प्रतिमा का स्वरूप