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________________ 31 जैनविद्या - 22-23 रचनाएँ पं. आशाधरजी जैन दर्शन के प्रकांड विद्वान होने के साथ ही अन्य भारतीय ग्रन्थों के भी ज्ञाता थे। उन्हें न्याय, व्याकरण, आयुर्वेद आदि पर भी असाधारण अधिकार था। उन्होंने अष्टांगहृदय, काव्यालंकार और अमरकोश जैसे ग्रन्थों पर टीकाएँ लिखीं, जो दुर्भाग्य से अप्राप्त हैं । आपने संस्कृत में बहुआयामी जैन साहित्य का सृजन तो किया ही, आपने रचित ग्रंथों के भाव और विषय को स्पष्ट करने हेतु पंजिका और टीकाएँ भी लिखीं। इस प्रकार आप स्वरचित ग्रंथों के आद्य टीकाकार भी हैं। आपकी बीस रचनाओं का उल्लेख मिलता है जिसमें सात रचनाएँ अप्राप्त हैं । आपकी रचनाओं को निम्न रूप से विषयानुसार वर्गीकृत किया जा सकता है - न्याय व्याकरण 1. क्रियाकलाप टीका • 2. अमरकोष टीका 3. प्रमेय रत्नाकर 4. काव्यालंकार टीका अध्यात्म 5. अध्यात्म रहस्य 6. इष्टोपदेश टीका आयुर्वेद 7. अष्टांग हृदयोद्योत टीका चरणानुयोग 8. ज्ञानदीपिका पंजिका 9. अनगार धर्मामृत - भव्य कुमुदचन्द्र टीका (सं. 1300) 10. सागार धर्मामृत - भव्य कुमुदचन्द्र टीका (सं. 1296) 11. मूलाराधना दर्पण (भगवती आराधना की टीका) 12. आराधनासार टीका प्रथमानुयोग 13. भरतेश्वराभ्युदय काव्य 14. त्रिषष्टि स्मृति ग्रंथ (सं. 1291/92) 15. राजमति विप्रलम्भ सटीक 16. भूपाल चतुर्विंशतिका टीका
SR No.524768
Book TitleJain Vidya 22 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2001
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size9 MB
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