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________________ 7 जैनविद्या - 22-23 3. धर्मामृत - धर्मामृत की रचना अनगार और सागार इन दो भागों में हुई है । अनगार धर्मामृत में मुनि धर्म का वर्णन करते हुए मुनियों के मूल और उत्तर गुणों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इसमें 9 अध्याय हैं। पहले अध्याय में 114 श्लोकों के द्वारा धर्म के स्वरूप का वर्णन किया गया है; दूसरे अध्याय में 114 श्लोकों के द्वारा सम्यक्त्वोत्पादनादिक्रम का; ज्ञानाराधना नामक तीसरे अध्याय में 24 श्लोकों में ज्ञान के स्वरूपादिक का, चतुर्थ अध्याय में 183 श्लोकों में चारित्राराधन का वर्णन; पिण्डशुद्धि नामक पाँचवें अध्याय में 69 श्लोकों में भोजन सम्बन्धी दोषों का विस्तार से निरूपण कर के साधु को निर्दोष भोजन करने योग्य बतलाया गया है। छठे अध्याय में एक सौ बारह श्लोक हैं, इसका नाम मार्ग महोयोग है । तपाराधना नामक सातवें अध्याय में 104 श्लोक द्वारा 12 तपों का वर्णन है। आठवें अध्याय का नाम आवश्यक निर्युक्ति है । इसमें 134 श्लोकों में साधु के छह अवश्यक सामायिक, स्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और कायोत्सर्ग का वर्णन है। नौवें अध्याय में नित्यनैमित्तिक क्रियाओं का वर्णन 100 श्लोकों में हुआ है। इसप्रकार इसमें कुल 654 श्लोक हैं । सागर धर्मामृत- गृहस्थधर्म का निरूपण आठ अध्यायों में हुआ है। इसका विस्तृत विवेचन आगे करेंगे 32 4. अष्टांग हृदयोद्योत - 'वाग्भटसंहिता' अष्टांग हृदय नामक आयुर्वेद ग्रन्थ जिसकी रचना 'वाग्भट' ने की थी, को व्यक्त करने के लिए आशाधर ने अष्टांग हृदयोद्योत नामक टीका लिखी थी । यह ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है । 5. मूलाराधना टीका - आचार्य शिवकोटि की कृति 'भगवती आराधना' नामक ग्रन्थ पर आशाधर ने संस्कृत में 'मूलाआराधना दर्पण' नामक टीका लिखी थी 34 इस टीका के अतिरिक्त एक टिप्पणी और प्राकृत टीका तथा 'प्राकृत पंचसंग्रह' ग्रन्थ भी लिखे थे। 6. इष्टोपदेश टीका - पूज्यपादाचार्य द्वारा रचित इष्टोपदेश पर आशाधर ने संस्कृत में टीका लिखी थी” । आशाधर ने विभिन्न ग्रन्थों से श्लोकों को उद्धृत कर ग्रन्थ का हार्द समझाने का प्रयास किया है। इसका पहलीबार प्रकाशन माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला, मुम्बई से 'तत्त्वानुशासनादि संग्रह' हुआ था। इसके बाद सन् 1955 में वीर सेवा मन्दिर सोसाइटी, दिल्ली से ग्रन्थाङ्क 11 के रूप में हिन्दी टीका सहित हुआ । इसके सम्पादक जुगलकिशोर मुख्तार हैं । 7. अमरकोष टीका " - यह अनुपलब्ध है । 8. क्रिया कलाप - इसकी हस्तलिखित पाण्डुलिपि पन्नालाल सरस्वती भवन, मुम्बई में हैं । 9. आराधनासार टीका7 हस्तलिखित प्रति मौजूद है। - यह उत्कृष्ट कृति भी अप्राप्त है। जयपुर में इसकी
SR No.524768
Book TitleJain Vidya 22 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2001
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size9 MB
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