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जैनविद्या - 22-23 4. प्रोषधोपवास प्रतिमा
पूर्वगृहीत सभी व्रतों के साथ पर्व के दिनों अर्थात् अष्टमी और चतुर्दशी को विधिपूर्वक एकबार आहार करना वस्तुत: प्रोषधोपवास प्रतिमा कहलाती है। 5. सचित्तविरत प्रतिमा
जब श्रावक सचित्त भोजन का त्याग कर देता है, तब उसे पाँचवीं सचित्त विरत प्रतिमाधारी कहा जाता है। सचित्त वस्तुत: एक पारिभाषिक शब्द है। वनस्पति भी जीव हैं । जब तक सब्जी कच्ची अवस्था में रहती है वह सजीव कहलाती है। अग्नि से संस्कारित वह वस्तुत: अचित्त हो जाती है। इस दृष्टि से पानी भी उबाल कर पिया जाता है। इससे प्राणी और इन्द्रिय-संयम का अनुपालन किया जाता है। 6. दिवा ब्रह्मचर्य/रात्रिभुक्ति-त्याग प्रतिमा ____ पाँचों प्रतिमाओं का अनुपालक श्रावक जब दिवा-मैथुन का परित्याग कर देता है तब वह दिवा-मैथुन-त्यागी/रात्रिभुक्ति-त्याग प्रतिमाधारी कहलाता है। इस प्रतिमा का धारी श्रावक दिन में समस्त काम-प्रवृत्तियों का त्याग कर देता है । इस प्रतिमा का धारी श्रावक रात्रिभोजन का मन, वचन, काय से त्यागी होता है। यही कारण है कि इसे रात्रिभुक्तित्याग प्रतिमा भी कहते हैं।7 7. ब्रह्मचर्य प्रतिमा __ पूर्व की सभी षट्प्रतिमाओं के धारी श्रावक जब मन, वचन, काय से स्त्री मात्र के संसर्ग का त्याग कर देता है तब उसे ब्रह्मचर्य प्रतिमा कहते हैं। उसकी दैनिकचर्या में घरगृहस्थी के कार्यों के प्रति प्रायः उदासीनता मुखर हो उठती है। 8. आरम्भ-त्याग प्रतिमा
पूर्वोक्त सप्तप्रतिमाओं का धारक श्रावक जब आजीविका के साधनभूत सभी प्रकार के व्यापार, खेती-बाड़ी, नौकरी आदि का त्याग कर देता है, तब वह आरम्भ-त्याग प्रतिमा का धारी कहलाता है। 9. परिग्रह-त्याग प्रतिमा ___ उपर्युक्त आठों प्रतिमाओं का धारी साधक-श्रावक जब सभी प्रकार के परिग्रहों - जमीन-जायदाद आदि से अपना स्वत्व और स्वामित्व त्याग देता है तब वह साधक श्रावक वस्तुतः परिग्रह-त्याग प्रतिमाधारी कहलाता है। 10. अनुमति-त्याग प्रतिमा
पूर्वोक्त सभी नौ प्रतिमाओं का अनुपालक श्रावक जब घर और बाहर के किसी भी लौकिक कार्य-व्यापार में किसी भी प्रकार की अनुमोदना, परामर्श देना अथवा स्वीकारने का सर्वथा त्याग कर देता है तब वह अनुमति-त्याग प्रतिमा का धारक होता है। ऐसे साधक