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जैनविद्या - 20-21 हो सकता है, धर्म का नहीं । आगम की दृष्टि से भी यह उचित नहीं; क्योंकि आगम समस्त प्राणियों के हित का अनुशासन करता है । हिंसक नित्य उद्विग्न रहता है, सतत उसके वैरी रहते हैं, यहीं वह बंध, क्लेश को पाता है और मरकर अशुभगति में जाता है, लोक में निन्दनीय होता है, अतः हिंसा से विरक्त होना कल्याणकारी है। हिंसा विरक्ति से मनुष्यायु का आस्रव होता है।42 प्राणिरक्षा को संयम भी माना है । अत: अहिंसा आचरणीय है।
क्षमा
शरीर-यात्रा के लिए पर घर जाते समय भिक्षु को दुष्टजनों के द्वारा गाली, हँसी, अवज्ञा, ताड़न, शरीर-छेदन आदि क्रोध के असह्य निमित्त मिलने पर भी कलुषता का न होना उत्तम क्षमा है। व्रत, शील का रक्षण, इहलोक और परलोक में दुःख का न होना और समस्त जगत में सम्मान, सत्कार होना आदि क्षमा के गुण हैं। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का नाश करना आदि क्रोध के दोष हैं; यह विचारकर क्षमा धारण करना चाहिए। क्षमा को पद्मलेश्या का लक्षण माना गया है।46 मार्दव ___ "मृदोभविः कर्म वा मार्दवम्, स्वभावेन मार्दवं स्वभाव मार्दवं' अर्थात् स्वाभाविक मृदु स्वभाव मार्दव है। उत्तम जाति, कुल, रूप, विज्ञान, ऐश्वर्य, श्रुतलाभ और शक्ति से युक्त होकर भी इनका मद नहीं करना, दूसरे के द्वारा पराभव के निमित्त उपस्थित किये जाने पर भी अभिमान नहीं होना मार्दव है।48 निरभिमानी और मार्दवगुण युक्त व्यक्ति पर गुरुओं का अनुग्रह होता है। साधुजन भी उसे साधु मानते हैं। ... अहंकार समस्त विपदाओं की जड़ है। अतः मार्दव भाव रखना चाहिए। मार्दव से मनुष्यायु का आस्रव होता है। विनय
समस्त सम्पदायें विनयमूलक हैं; यह पुरुष का भूषण है। यह संसार-समुद्र से पार उतारने के लिए नौका के समान है। इसके चार भेद हैं - "ज्ञानदर्शनचारित्रोपचाराः' अर्थात् ज्ञानविनय, दर्शनविनय, चारित्रविनय और उपचारविनय । ज्ञानलाभ, आचार विशुद्धि और सम्यग् आराधना आदि की सिद्धि विनय से होती है और अन्त में मोक्षसुख भी इसी से मिलता है अत: विनयभाव अवश्य ही रखना चाहिए। विनय से सातावेदनीय एवं मनुष्यायु का आस्रव होता है। आर्जव
मन, वचन और काय में कुटिलता न होना आर्जव अर्थात् सरलता है। सरल हृदय गुणों का आवास है । ... मायाचारी की निन्द्यगति होती है। साधुओं के विषय में कहते हैं कि अपने मन में दोषों को अधिक समय तक न रखकर निष्कपट वृत्ति से बालक की तरह सरलतापूर्वक दोष निवेदन करने में न तो ये दोष होते हैं और न अन्य ही। आर्जव को सातावेदनीय” और मनुष्यायु का आस्रव माना गया है।