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जैनविद्या - 20-21 लघीयस्त्रय में अकलंकदेव द्वारा वर्णित प्रमाण विषयक चार्ट इस प्रकार है
प्रमाण ज्ञान के भेद
प्रत्यक्ष प्रमाण
परोक्ष प्रमाण (श्रुत)
अनुमान आगम
अवाय धारणा
सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष
मुख्य प्रत्यक्ष
या इन्द्रियं प्रत्यक्ष
अनिन्द्रिय प्रत्यक्ष अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष अवग्रह
स्मृति संज्ञा (प्रत्यभिज्ञान)
चिंता (तर्क)
अभिनिबोध (अनुमान) नोट - अकलंकदेव के अनुसार मति, स्मृति, संज्ञा, चिंता और अभिनिबोध ज्ञान यदि शब्द __ संसर्ग रहित हों तो सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष के भेद हैं और यदि शब्द संसर्ग सहित हों
तो परोक्ष श्रुत प्रमाण के भेद जानना चाहिये। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि अकलंक के उत्तरवर्ती जैन नैयायिकों ने इन्द्रियजन्य ज्ञान को एकमत से सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष स्वीकार किया किन्तु स्मृति आदि को किसी ने भी अनिन्द्रिय प्रत्यक्ष नहीं माना, वे परोक्ष में ही अन्तर्भूत किये गये। 4. न्यायविनिश्चय सवृत्ति
अकलंकदेव की रचनाओं में न्यायविनिश्चय का महत्वपूर्ण स्थान है। सिद्धसेन के न्यायावतार के बाद जैन साहित्य में न्यायविनिश्चय ही एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जिसके आधार पर उत्तरकालीन जैन-न्याय के साहित्य का सृजन हुआ। अकलंकदेव ने न्यायविनिश्चय पर पद्यगद्यात्मक वृत्ति भी लिखी। वादिराज रचित न्यायविनिश्चय विवरण नामक टीका भी प्राप्त हुई है। न्यायविनिश्चय में तीन प्रस्ताव हैं- 1. प्रत्यक्ष प्रस्ताव - इसमें 169 कारिका हैं, 2. अनुमान प्रस्ताव -इसमें 216 कारिका हैं और 3. आगम प्रस्ताव -इसमें 94 कारिका हैं। इस प्रकार इसमें कुल 479 कारिकाएँ और पद्य हैं । यह प्रौढ़ और गम्भीर भाषा में निबद्ध है। प्रत्यक्ष प्रस्ताव में प्रत्यक्ष की विशद परिभाषा की गयी है। द्रव्य का लक्षण, गुण-पर्याय का स्वरूप, द्रव्य और पर्याय के साथ सामान्य और विशेष का प्रयोग किया गया है। द्रव्य और पर्याय की चर्चा करते हुए गुण और पर्याय में भेदाभेद बताते हुए उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य का निरूपण किया है। इसमें ज्ञान को अर्थग्राही सिद्ध करते हुए बौद्ध मत के विकल्प-लक्षण, तदाकारता, विज्ञानवाद, नैरात्मवाद, परमाणुवाद की विस्तृत आलोचना की है और ज्ञान को स्वसंवेदी तथा निराकार सिद्ध किया है। इसमें बौद्ध के इन्द्रिय प्रत्यक्ष, मानस प्रत्यक्ष, स्वसंवेदन प्रत्यक्ष और योगि प्रत्यक्ष तथा सांख्य और नैयायिक के प्रत्यक्ष का खण्डन किया है। अंत में अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष के लक्षण के साथ यह प्रस्ताव समाप्त हो जाता है।