________________
112
जैनविद्या - 20-21
1. प्रत्यक्षलक्षण प्राहं स्पष्ट साकारं अञ्जसा।
द्रव्य पर्याय सामान्य विशेषात्मार्थ वेदनम् ॥ न्यायविनिश्चय, भाग 1, पृष्ठ 3 2. तत्वार्थवार्तिक भाग-2, पृष्ठ - 235 3. वही, भाग-1, पृष्ठ - 256 4. सिद्धिविनिश्चय टीका, पृष्ठ - 375 5. "जैन और न्याय वैशेषिक दर्शन में द्रव्य गुण सम्बन्ध", महावीर जयन्ती स्मारिका, वर्ष 1998,
प्र. राजस्थान जैन सभा, जयपुर 6. न्यायविनिश्चय भाग-1, पृष्ठ -3 7. तत्त्वार्थवार्तिक भाग-1, पृष्ठ - 182 8. न्यायविनिश्चय, भाग-1, पृष्ठ - 5 9. वही, 11/9 10. सत् द्रव्यलक्षणं, तत्वार्थसूत्र, 5/29 11. तत्वार्थसूत्र, 5/30 12. धर्मा तावत् अनन्तधर्मा जीवादिः, प्रमेयत्वान्यथानुपवत्ते । अष्टसहस्री, पृष्ठ - 152 13. अनाद्यनन्तत्वात् धर्मधर्मिस्वभाव भेदव्यवहारस्य कलमब भव्यसंसारनद्वा। अष्टसहस्री, पृष्ठ - 152 14. लघीयस्त्रय, 62 15. तत्वार्थवार्तिक अध्याय 1, सूत्र 31 16. सिद्धिविनिश्चय, 10/3 17. आप्तमीमांसा, 106 18. "वाक्येष्वनेकान्तद्योती", वही, 103 19. अष्टसहस्री पृष्ठ - 152 20. प्रमाणवार्तिक, 3/43, पूर्वार्द्ध 21. वही, मनोरथनन्दि वृत्ति, 3/45 22. वही, मनोरथनन्दि वृत्ति, 3/41 23. समयसार, गाथा - 6 एवं 7 24. अनस्तधर्मणस्तत्व पश्यन्ति प्रत्यगात्मनः। समयसार कलश 2, पूर्वार्द्ध 25. समयसार, गाथा-7 पर अमृतचन्द्राचार्य कृत टीका 26. वही, गाथा-155 पर अमृतचन्द्राचार्य कृत टीका 27. न्यायविनिश्चय भाग - 1, पृष्ठ 62-63 28. वही, भाग-1, पृष्ठ - 20 29. वही, भाग-1, पृष्ठ - 165, 166 30. न्यायकुमुदचन्द्र भाग-1, पृष्ठ - 227 31. विस्तृत विवेचन के लिये देखें - 'जैन दर्शन में प्रमाणनय व्यवस्था', वात्सल्य रत्नाकर, भाग-2
अथवा 'श्रुतज्ञान की स्याद्वादनय संस्कृतता', महावीर जयन्ती स्मारिका, वर्ष - 1989, प्र. राजस्थान जैन सभा, जयपुर
बिल्टीवाला भवन, अजबघर का रास्ता किशनपोल बाजार, जयपुर - 302003