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________________ जैनविद्या 18 जैनविद्या 18 अप्रैल-1996 अप्रेल-1996 आचार्य समन्तभद्र और उनकी कृति आप्तमीमांसा/देवागम स्तोत्र -डॉ. रमेशचन्द्र जैन . स्वामी समन्तभद्र (विक्रम की दूसरी-तीसरी शताब्दी) का जन्म क्षत्रिय कुल में हुआ था। उनके पिता फणिमण्डलान्तर्गत उरगपुर के राजा थे। यह बात उनकी कृति आप्तमीमांसा की एक प्राचीन ताड़पत्रीय प्रति के निम्नलिखित पुष्पिका वाक्य से जाना जाता है। यह प्रति श्रवणबेलगोल के श्री दौर्बलिजिनदास शास्त्री के शास्त्रभण्डार में सुरक्षित है।' 'इति श्री फणिमण्डलालंकारस्योरगपुराधिपसूनोः श्री स्वामिसमन्तभद्रमुनेः कृतौ आप्तमीमांसायाम् ।' उरगपुर पाण्ड्य देश की राजधानी जान पड़ता है। इसका उल्लेख कालिदास ने भी किया है'अथोरगाख्यस्य पुरस्य नाथं' (रघुवंश 6/59)। समन्तभद्र की रचनाएं आचार्य समन्तभद्र द्वारा प्रणीत रचनाएं निम्नलिखित मानी जाती हैं - 1. वृहत्स्वयम्भू स्तोत्र 2. स्तुतिविद्या 3. आप्तमीमांसा या देवागम स्तोत्र __4. युक्त्यनुशासन 5. रत्नकरण्ड श्रावकाचार 6. जीवसिद्धि 7. प्रमाण पदार्थ 8. तत्त्वानुशासन 9. प्राकृत व्याकरण 10. कर्मप्राभृत टीका 11. गन्धहस्तिमहाभाष्य।
SR No.524765
Book TitleJain Vidya 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1996
Total Pages118
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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