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________________ जैनविद्या 18 47 परिशिष्ट 'ब' समन्तभद्र भारती स्तोत्र (श्री नागराज 'उभयकविता' विलास शक सं. 1253) संस्मरीमि तोष्टवीमि नंनमीमि भारती तंतनीमि पंपटीमि वंभणीमि तेमितां । देवराजनागराजमर्त्यराज पूजितां, श्री समन्तभद्रवाद भासुरात्म गोचरां ॥१॥ मातृ मान मेय सिद्धिवस्तुगोचरां स्तुवे, सप्तभंग सप्त नीतिगम्यतत्वगोचरां । मोक्षमार्ग तद्विपक्षभूरिधर्म गोचरा, माप्तत्व गोचरां समन्तभद्रभारती ॥२॥ सूरिसूक्ति वंदितामुपेयतत्वभाषिणी चारु कीर्तिभासुरामुपाय तत्व साधनीं । पूर्वपक्ष खंडन प्रचण्ड वाग्विलासिनी संस्तुवे जगद्धितां समन्तभद्रभारती ॥३॥ पात्रकेसरि प्रभाव सिद्धिकारिणी स्तुवे, भाष्यकार पोषितामलंकृतां मुनीश्वरैः । गृद्धपिच्छभाषितप्रकृष्ट मंगलार्थिकां, सिद्धिसौख्य साधनीं समन्तभद्रभारती ॥४॥ इन्द्रभूतिभाषित प्रमेयजालगोचरां, वर्द्धमान देव बोध बुद्ध चिद्विलासिनीं। यौग सौगतादिगर्वपर्वताशनिं स्तुवे, क्षीरवार्धिसन्निमां समन्तभद्र भारती ॥५॥ माननीतिवाक्य सिद्धवस्तु धर्मगोचरां, मानित प्रभावसिद्ध सिद्धिसिद्धसाधनीं। घोर भूरि दुख वार्धितारणाक्षमामिमां, चारुचेत सास्तुवे समन्तभद्रभारतीम् ॥६॥ सान्तनाद्यनाद्यनन्त मध्ययुक्त मध्यमां,शून्य भाव सर्ववेदितत्व सिद्धिसाधनीं। हेत्वहेतुवाद सिद्धवाक्य जालभासुरां, मोक्षसिद्धये स्तुवे समन्तभद्रभारतीम् ॥७॥ व्यापकद्वयाप्त मार्ग तत्व युग्मगोचरां, पापहारि वाग्विलासिभूषणांशुकां स्तुवे । श्री करींच धीकरी च सर्व सौख्यदायिनी, नागराज पूजितां समन्तभद्रभारतीम् ॥८॥ 'कर्णाटक कवि चरित' से इनका रचा ‘पुण्याश्रवचम्पू' ग्रंथ भी मिलता है।
SR No.524765
Book TitleJain Vidya 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1996
Total Pages118
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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