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आरम्भिक
शोध पत्रिका 'जैनविद्या' का यह अंक आचार्य समन्तभद्र विशेषांक के रूप में पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए हम हर्षित हैं।
आचार्य समन्तभद्र ईसा की द्वितीय शताब्दी के मूलसंघ से सम्बन्धित प्रभावक आचार्य हैं। आचार्य समन्तभद्र अद्भुत प्रतिभा के धनी थे, ज्ञान के भण्डार थे। संस्कृत, प्राकृत, कन्नड, तमिल आदि भाषाओं के प्रखर विद्वान थे। तीर्थंकर महावीर की आचार्य-परम्परा में आचार्य समन्तभद्र का अति विशिष्ट स्थान होने के कारण उन्हें परवर्ती आचार्यों ने अति सम्मानित उपाधियों से विभूषित किया है। उन्होंने पूर्व से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण प्रायः सभी प्रमुख स्थानों की यात्रा कर जनता को जैनदर्शन का मर्म समझाया। वे महान योगी, त्यागी, तपस्वी एवं तत्वज्ञानी थे। उनकी पाँच रचनाएं उपलब्ध हैं -
___ 1. आप्तमीमांसा (देवागम स्तोत्र), 2. स्तुतिविद्या (जिनशतक), 3. युक्त्यनुशासन, 4. स्वयंभू स्तोत्र और 5. रत्नकरण्ड श्रावकाचार। सभी रचनाएं अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं ख्याति प्राप्त हैं।
जिन विद्वानों ने अपनी रचनाएं भेजकर इस अंक के कलेवर-निर्माण में योगदान किया उनके हम आभारी हैं। अंक के सम्पादक, सहयोगी सम्पादक, सम्पादक-मण्डल भी धन्यवादाह हैं।
कपूरचन्द पाटनी
नरेशकुमार सेठी
अध्यक्ष
मंत्री
प्रबन्धकारिणी कमेटी, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी