SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनविद्या 18 सं. 1657 में भ. विद्याभूषण के शिष्य श्रीभूषण ने पाण्डवपुराण' में स्वामी जी का पुण्य स्मरण किया है - समंतभद्रो भद्रार्थो भानुभाभारभूषितः । येन देवागमस्तोत्रं कृतं व्यक्तमिहावनौ । इन्हीं ने अपने शान्तिपुराण में स्वामी समंतभद्र को सूर्य की भांति दमकता हुआ माना है - वाक्यं समन्तभद्रस्य दधेऽहं चित्तकैरवे । येन सूर्यायते नित्यं हृदयाम्बुज कोषके ॥ हरिवंशपुराण के कर्ता पुन्नाट संघी आचार्य जिनसेन (840 वि.स.) ने लिखा है कि समन्तभद्र की वाणी भगवान महावीर की भांति द्योतित है और उन्होंने जीवसिद्धि' और 'युक्त्यनुशासन' नामक रचनाएं रची थीं - जीवसिद्धिविधायहि कृतयुक्तत्यनुशासनं । वचः समन्तभद्रस्य वीरस्येव विजृभते । आठवीं सदी के धुरन्धर विद्वान आचार्य अकलंक देव ने अपनी अष्टशती में समन्तभद्र को स्याद्वादमार्ग के प्रणेता के रूप में प्रणाम किया है - श्री वर्द्धमानमकलंकमन्धिवन्द्यपादारविन्दयुगलं प्रणिपत्य मूर्ला । भव्यैकलोकनयनंपरिपालयन्तं स्याद्वादवम परिणौमि समन्तभद्रम् । देवागमवृत्ति (भाष्य) का प्रणयन करते हुए भट्टाकलंकदेव ने समंतभद्र को उनकी विशेषताओंसहित प्रणाम किया है तीर्थं सर्वपदार्थतत्वविषय स्याद्वाद पुण्योदधे-, भव्यनामकलंकभावकृतये प्रभाविकाले कलौ । येनाचार्य समन्तभद्रंयतिना तस्मै नमः संततं, कृत्वा विब्रियतेस्तवं भगवतां देवागमस्तत्कृतिः ।। आचार्य वसुनन्दि सैद्धान्तिक ने स्वामी समन्तभद्र के स्याद्वादशासन की स्तुति निम्न शब्दों में की है लक्ष्मीभृत्परमं निरुक्तिनिरतं निर्वाणसौख्यप्रदं, कुज्ञानात पवारणाय विधृतं छत्रं यथा भासुरं । सज्जानैर्नय युक्ति मौक्तिकफलैः सशोभमानं परं, वन्दे तद्धत कालदोषममलं सामन्तभद्रम् मतम् ॥ कलिकाल में समन्तभद्र का सप्तभङ्गात्मक मार्ग सबका कल्याणकारी हो ऐसी प्रार्थना श्रवणवेलगोल के शिलालेख में उत्कीर्ण है
SR No.524765
Book TitleJain Vidya 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1996
Total Pages118
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy