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________________ 56 घ्राण चक्षु श्रोत्र घ्राण इन्द्रिय के आवरणकर्मों का क्षय - उपशम चक्षु इन्द्रिय के आवरणकर्मों का क्षय - उपशम श्रोत्र इन्द्रिय के आवरणकर्मों का क्षय - उपशम गन्ध रूप शब्द जैन विद्या 14-15 तीन इन्द्रिय से पाँच इन्द्रिय जीव, जैसे - खटमल जूँ, मक्खी, मच्छर, हंस, कबूतर, गाय, भैंस, देव, मनुष्य, नारकी आदि । चार इन्द्रिय से पाँच इन्द्रिय जीव, जैसे - मक्खी, मच्छर, कबूतर, हंस, गाय, भैंस, मनुष्य, देव, नारकी आदि । पाँच इन्द्रिय जीव, जैसे- गाय, भैंस, कबूतर, हंस, मनुष्य, नारकी, देव आदि । जिस इन्द्रिय से स्पर्श किया जाता है उसे 'स्पर्शन इन्द्रिय' कहते हैं अर्थात् जीव की स्पर्शग्राह्य शक्ति को 'स्पर्शन इन्द्रिय' कहते हैं। स्पर्शन द्वारा 'स्पर्श' का ज्ञान होता है अर्थात् स्पर्शन का विषय 'स्पर्श' है। ध्यान देने की बात है कि स्पर्श का ज्ञान सम्पूर्ण शरीर के किसी भी अंग द्वारा अथवा किसी भी भाग या अंग में किया जा सकता है; क्योंकि स्पर्शन सर्वांग अर्थात् सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त होती है 17 और सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त होने के कारण अनेक आकारवाली है । स्पर्शन पंचेन्द्रिय तक के सभी जीवों के पाई जाती है। किन्तु कुछ जीव ऐसे भी हैं जिनके मात्र स्पर्शन इन्द्रिय पाई जाती है। ऐसे जीवों को एकेन्द्रिय जीव कहते हैं । पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पतिकायिक, ये पाँच एकेन्द्रिय जीव हैं। विकास की दृष्टि से ये सबसे कम विकसित जीव हैं। इन जीवों से जो जीव कुछ अधिक विकसित होते हैं उनके दो इन्द्रियाँ पाई जाती हैं . स्पर्शन और रसना । जिस इन्द्रिय के द्वारा 'रस' का ग्रहण होता है उसे 'रसनेन्द्रिय' कहते हैं अर्थात् जीव की रस- ग्राह्य शक्ति को 'रसनेन्द्रिय' कहते हैं । रस इन्द्रिय द्वारा मात्र 'रस' का ही ज्ञान होता है । रसनेन्द्रिय दो इन्द्रिय से पाँच इन्द्रिय तक के जीवों के पाई जाती है। जिनके स्पर्शन और रसना, ये दो इन्द्रियाँ पाई जाती हैं उन्हें दो इन्द्रिय जीव कहते हैं, जैसे- शंख, शुक्ति, कृमि आदि । इन जीवों से अधिक विकसित जीवों के तीन इन्द्रियाँ पाई जाती हैं- स्पर्शन, रसना और घ्राण । जिस इन्द्रिय से 'गंध' का ज्ञान होता है उसे 'घ्राण- इन्द्रिय' कहते हैं । घ्राण इन्द्रिय तीन इन्द्रिय जीवों से पाँच इन्द्रिय तक के जीवों के पाई जाती है, एक इन्द्रिय और दो इन्द्रिय जीवों के नहीं पाई जाती। जिन जीवों के स्पर्शन, रसना और घ्राण इन्द्रियाँ पाई जाती हैं उन्हें तीन इन्द्रिय जीव कहते हैं । पिपीलिका, खटमल, बिच्छू, आदि ये तीन इन्द्रिय जीव हैं। जिन जीवों के चार इन्द्रियाँ - स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु होती हैं उन्हें चार इन्द्रिय जीव कहते हैं । जिस इन्द्रिय के द्वारा देखा जाता है उसे 'चक्षु इन्द्रिय' कहते हैं, अथवा जिसके द्वारा 'रूप' का ज्ञान होता है उसे 'चक्षु इन्द्रिय' कहते हैं। चक्षु इन्द्रिय चार इन्द्रिय और पाँच इन्द्रिय जीवों के होती है, अन्य जीवों के नहीं । उपर्युक्त चारों इन्द्रियों में अथवा एक इन्द्रिय से चार इन्द्रिय तक जीवों के 'मिथ्यादृष्टि गुणस्थान' होता है अर्थात् स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु इन्द्रिय-मार्गणा 'मिथ्यादृष्टि गुणस्थान' का अन्वेषण-स्थान है।18 जिन जीवों के उपर्युक्त चार इन्द्रियों सहित श्रोत्र इन्द्रिय होती हैं उन्हें
SR No.524762
Book TitleJain Vidya 14 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1994
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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