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________________ 36 जैनविद्या 14-15 P→Q निम्नलिखित हैं - संकेत अर्थ यह मामला नहीं है कि P P&Q P और Q PVQ P अथवा 0 यदि P तोQ PHQ P यदि और केवल यदि (Vv)P प्रत्येक v के लिए, P (ev)P किसी के लिए,P (E! v)P ठीक एक v होता है ताकि P इसकी सहायता से यह वाक्य 'प्रत्येक x के लिए एक y होता है इस प्रकार कि x < निम्नलिखित रूप में संदृष्टिमय बनता है - (Vx) (Ey) (x <y) अब कैण्टर के दूसरे स्वयंसिद्ध का संक्षिप्त सूत्रीकरण यह है - (ay) (Vx) (xey bp (x), जहाँ यह समझ है कि + (x) एक ऐसा सूत्र है जिसमें चर (variable) 'y स्वतंत्र नहीं है। रसेल के विरोधाभास (Paradox) को बनाने के लिए हम चाहते हैं कि , (x) यह कथन करे कि x स्वयं का सदस्य नहीं है। इसका यथार्थ सूत्र स्पष्ट रूप से यह है - - (x Ex) तब हमें अमूर्त कल्पना के स्वयंसिद्ध का एक उदाहरण इस प्रकार प्राप्त होता है - (By) (Vx) (xey+- [xe x]) ...... (2) उपर्युक्त वाक्य (2) में x=y लेने पर यह अनुमान प्राप्त होता है कि ye yH-VE Y), ___ ...... (3) जो कि पूर्वापर विरोध yey &- (y e y) ___...... (4) से न्यायरूप से तुल्य है। उपर्युक्त ऐतिहासिक व्युत्पत्ति (derivation) के दूरगामी परिणाम निकले, जबकि राशिसिद्धान्त को स्वयं-सिद्धात्मक आधार दिये गये। उपर्युक्त में (1) वाक्य स्पष्टरूप से सिद्ध करता
SR No.524762
Book TitleJain Vidya 14 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1994
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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