SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नविधा 14-15 . 15 पाठ के अनुसार है, किन्तु स्व. डॉ. हीरालाल जैन एवं स्व. डॉ. ए. एन. उपाध्ये द्वारा सम्पादित और जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर ने सन् 1973 ई. में प्रकाशित षट्खण्डागम की वीरसेनाचार्य विरचित 'धवला टीका' के प्रथम खण्ड (सत्प्ररूपणा) की प्रस्तावना की पृष्ठ 33 पर मुद्रित पाद-टिप्पणी में उद्धृत इन श्लोकों में ऊपर रेखांकित अंशों में पाठान्तर है, यथा - इत्याप्त, वादिवृन्दारको, वाग्मितो वाग्मिनो, शुचिनिर्मला, तां नमाम्यहम् । 4. 'श्री धवला का समय', अनेकान्त, वर्ष सात, किरण 7-8, पृ. 207-214 तथा 'दि जैना सोर्सेज ऑफ दि हिस्ट्री ऑफ एन्शियेन्ट इण्डिया, पृ. 187। 5. 'धवला प्रशस्ति के राष्ट्रकूट नरेश', अनेकान्त, वर्ष आठ, किरण 2, पृ. 97-101 तथा 'दि जैना सोर्सेज' पृ. 1871 6. तस्य शिष्योऽभवच्छ्रीमान् जिनसेनः समिद्धधीः। अविद्धावपि यत्कर्णो विद्धौ ज्ञानशलाकया ॥27॥ - जयधवला प्रशस्ति 7. प्राकृतसंस्कृतभाषामिश्रां टीकां विलिख्य धवलाख्याम् । जयधवलां च कषायप्राभृतके चतसृणां विभक्तीनाम् ॥ 82 ॥ विंशतिसहस्रसद्ग्रन्थरचनया संयुतां विरच्य दिवम् । यातस्ततः पुनस्तच्छिष्यो जयसेन गुरूनामा ॥83॥ तच्छेषं चत्वारिंशता सहस्त्रैः समापितकान् । जयधवलैवं षष्ठीसहस्रग्रन्थोऽभवट्टीका ॥ 84॥ - श्रुतावतार, आचार्य इन्द्रनन्दि 8. इति श्री वीरसेनीया टीका सूचार्थदर्शिनी। वाटग्रामपुरे श्रीमद्गुर्जरायानुपालिते ॥6॥ फाल्गुणे मासि पूर्वान्हे दशम्यां शुक्लपक्षके। प्रवर्द्धमानपूजोरूनन्दीश्वरमहोत्सवे ॥7॥ अमोघवर्षराजेन्द्रराज्यप्राण्यगुणोदया । निष्ठिता प्रचयं यायादाकल्पान्तमनल्पिका ॥8॥ एकान्तषष्ठिसमधिक सप्तशताब्देषु शकनरेन्द्रस्य। समतीतेषु समाप्ता जयधवला प्राभृतव्याख्या॥11॥ - जयधवला प्रशस्ति 9. जर्नल ऑफ बंगाल बिहार रॉयल एशियाटिक सोसायटी, भाग अठारह, पृ. 226। पं. नाथूराम प्रेमी का जैन साहित्य और इतिहास, पृ. 4971 जिनरत्नकोश, पृ. 1331 10. जयधवला, खण्ड-1, प्रस्तावना। 11. डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन का लेख - "The Birthplace of Dhavala and Jayadhavala', जैन एक्टीक्वेरी, वर्ष पन्द्रह, किरण-2, पृ. 46-57।
SR No.524762
Book TitleJain Vidya 14 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1994
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy