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मंगलं पुण्यं
मंगलस्यैकार्थ उच्यते, मंगलं पुण्यं पूतं पवित्रं प्रशस्तं शिवं शुभं कल्याणं भद्रं सौख्यमित्येवमादीनि मंगलपर्यायवचनानि ।
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मंगलस्य निरुक्तिरुच्यते मलं गालयति विनाशयति घातयति दहति हन्ति विशोधयति विध्वंसयतीति मंगलम् ।
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अथवा मंगं सुखं, तल्लाति आदत्त इति वा मंगलम् ।
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अथवा मङ्गति गच्छति कर्ता कार्यसिद्धिमनेनास्मिन् वेति मङ्गलम् ।
षट्खण्डागम (पु. 1, पृ. 33 )
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मंगल के एकार्थवाचक नाम कहते हैं - मंगल, पुण्य, पूत, पवित्र, प्रशस्त, शिव, शुभ, कल्याण, भद्र और सौख्य इत्यादि मंगल के पयार्यवाची
नाम हैं।
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- (अब) मंगल की निरुक्ति (व्युत्पत्तिजन्य अर्थ ) कहते हैं - जो मल का गालन करे, विनाश करे, घात करे, दहन करे, नाश करे, शोधन करे, विध्वंस करे उसे मंगल कहते हैं ।
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जैनविद्या 14-15
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- मंग शब्द सुखवाची है, उसे जो लावे, प्राप्त करे उसे मंगल कहते हैं ।
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अथवा कर्ता (किसी उद्दिष्ट कार्य को करनेवाला) जिसके द्वारा या जिसके किये जाने पर कार्य की सिद्धि को प्राप्त होता है उसे भी मंगल कहते हैं ।