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________________ जनविद्या-13 ] [ 73 नुकसान तो होता ही है सैंकड़ों प्राणियों को भी अपने जीवन से हाथ धोना पड़ता है । कभीकभी हम बिजली बिना कारण ही जलती छोड़ देते हैं और कमरा बन्द करके चले जाते हैं, शार्ट-सर्किट से आग लगने की जो दुर्घटनायें घटती हैं उसके पीछे प्रायः यही कारण होता है। कुछ लोग नल में पानी आ गया या नहीं यह बात मालूम करने के लिए भी समय से पूर्व नल खुला छोड़ देते हैं और प्रायः यह उनकी आदत हो जाती है। कभी-कभी उन्हें ध्यान ही नहीं रहता कि नल बन्द करें और उसे जैसे का तैसा छोड़कर घूमने, सिनेमा देखने, जीमने आदि स्थानों पर चले जाते हैं। परिणाम यह होता है कि जो पानी हमारी और हमारे परिवार की प्यास बुझाने व अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति में काम आता वह नाली में बह जाता है किसी के उपयोग में नहीं आता और हमारा कमरा भी पानी से भर जाता है । यह तो रोज ही होता है कि लोग फल इत्यादि खाकर उसके छिलके सड़क पर यूं ही फेंक देते हैं और लोग उनसे फिसल कर अपने हाथ-पांव तुड़वा बैठते हैं। कभी-कभी तो ऐसे 'लोगों में हम स्वयं अथवा हमारे निकट सम्बन्धी भी होते हैं । ध्वनि-प्रदूषण भी आजकल एक समस्या बन गयी है। घर-घर में रेडियो, टीवी आदि हो गये हैं जिन्हें हम ऊंची आवाज से बजाकर अपनी और पड़ोसियों की मींद हराम करते हैं। हमारी ऐसी हरकतों का परिणाम छात्रों का भुगतना पड़ता है जो अपनी परीक्षा की तैयारी में लगे होते हैं। धार्मिक स्थानों में भी ध्वनि विस्तारक यन्त्रों का उपयोग इस प्रकार किया जाता है कि जिनका किसी को कोई लाभ नहीं होता। हम समझते ही नहीं कि इस प्रकार के उपयोग करके हम कितने लोगों का दिल दुखाते हैं और फलस्वरूप कितनी हिंसा होती है। बड़े-बड़े कल-कारखाने और वाहन शहरों में और शहरों के आस-पास कितना जहरीला धुआँ उगलते हैं कि लोगों का स्वस्थ रहना भी एक समस्या बन गया है। अस्पतालों और डाक्टरों के यहाँ जो लोगों की भीड़ नजर आती है उसके पीछे के कारणों में यह भी एक बहुत बड़ा कारण है । हम लोग आवश्यकताओं से अधिक संग्रह करके भी समाज में विषमताओं को जन्म देते हैं। जहाँ हमारा काम चार साड़ियों से चल सकता है, वहां हम बक्से के बक्से साड़ियों से भर देते हैं। घर में एक टी. वी. से काम चल सकता है किन्तु एक ही घर में चार-चार टी. वी. हैं, आदि ।
SR No.524761
Book TitleJain Vidya 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1993
Total Pages102
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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