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________________ जैनविद्या-13 1 [ 63 पत्यौ प्रवजिते क्लीबे प्रनष्टे पतिते मृते । पंचस्वायत्सु नारीणां पतिरन्यो विधीयते ।।। 1.12।। 4. हरिषेण की धम्मपरिक्खा (5.9) में 'अश्रद्धेयं न वक्तव्यम्' के स्थान पर अमितगति ने लिखा तथा वानरसंगोतं त्वयादशि वने विभो । तरन्ती सलिले दृष्टा सा शिलापि मणा तथा ॥ प्रश्रद्धेयं न वक्तव्यं प्रत्यक्षमपि वीक्षितं । जानानः पण्डितैनं वृत्तान्त नपमन्त्रिणोः ॥12.72-73॥ 5. हरिषेण की धम्मपरिक्खा (7.5) में उद्धृत् 'अद्भिर्वाचापि दत्ता या' को अमितगति ने अपनी धर्मपरीक्षा (14.38) में कुछ परिवर्तन के साथ इस प्रकार लिखा है एकदा परिणीतापि विपन्ने दैवयोगतः । भर्तयक्षतयोनिः स्त्री पुन: संस्कारमर्हति ॥ 6. हरिषेण की धम्मपरिक्खा (7.6) में 'अष्टौ वर्षाण्युदीक्षते' को अमितगति ने धर्मपरीक्षा (14.39) में लिखा है प्रतीक्षेतःष्ट वर्षारिण प्रसूता वनिता सती । अप्रसूतात्र चत्वारि प्रोषिते सति भर्तरि । 7. हरिषेण की धम्मपरिक्खा (7.8) में उद्धृत 'पुराण मानवो धर्मः' को अमितगति ने धर्मपरीक्षा (14.49) में वैसा का वैसा ही ले लिया है। - 8. हरिषेण की धम्मपरिक्खा (7.8) में उद्धृत 'मानवं व्यासवासिष्ठ' को अमितगति ने (14.50 में) 'मनुव्यासवाष्ठिनां' लिखकर स्मृत किया है। १ हरिषेण की धम्मपरिक्खा (8.6) में उद्धृत 'गतानुगतिको लोको' को अमितगति ने 'दृष्ट्वानुसारिभिर्लोकः' (15.69) के रूप में लिखा है । निष्कर्ष इस विवेचन से इतना तो स्पष्ट है कि अमितमति की धर्मपरीक्षा का कोई अाधारभूत प्राकृत अथवा अपभ्रंश में लिखा ग्रन्थ अवश्य होना चाहिए। अन्यथा दो माह में इतना बड़ा
SR No.524761
Book TitleJain Vidya 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1993
Total Pages102
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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