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________________ 48 ] [ जैनविद्या-13 बना लिया था। मध्ययुग का साहित्य परीक्षा-प्रधान बन चुका था। बौद्धाचार्यों ने जिस तरह से पालम्बन परीक्षा, त्रिकाल परीक्षा, प्रमाण परीक्षा जैसे ग्रन्थ लिखे वहीं जैनाचार्यों ने प्राप्तपरीक्षा, सत्यशासन-परीक्षा जैसे दार्शनिक ग्रन्थों का निर्माण किया। धर्मपरीक्षा भी ऐसी ही निर्माण विधा में अनुस्यूत है जिसमें आचार्य अमितगति ने वेदों की अपौरुषेयता, सृष्टिकर्तृत्व, जातिवाद जैसे अनेक दार्शनिक मतों का खण्डन किया वहीं अविश्वसनीय कथानों की भी अपनी कल्पित कथाओं के आधार पर तीखी आलोचना की। हम अपने इस लेख में इन दोनों ही तत्वों की संक्षेप में मीमांसा प्रस्तुत करने का प्रयत्न करेंगे । मियकीय कथानों का खण्डन-धर्मपरीक्षा में मूलरूप से मिथकीय कथाओं का खण्डन किया गया है। इसमें मनोवेग जैन धर्मावलंबी राजकुमार है और पवनवेग उसका अभिन्न मित्र है जो अन्य धर्म को मानता है । पवनवेग की एकान्त मान्यताओं को खण्डित कर उसे सत्पथ की ओर लाने के लिए मनोवेग पटना की ओर प्रस्थान करता है जहाँ उसका शास्त्रार्थ होता है। यहां दस मूढ़ों की कथाएं दी गई हैं- रक्त मूढ़, द्विष्ट मूढ़, मनो मूढ़, व्युदग्राही मूढ़, पित्तदूषित मूढ़, आम्र मूढ़, क्षीर मूढ़ , अगुरु मूढ़, चंदनत्यागी मूढ़ और अन्य चार मूर्ख । इन कथाओं के साथ ही यहां कुछ पाख्यान आये हैं जिसका सप्रामाणिक उल्लेख कर उन्हें अविश्वसनीय ठहराया गया है । इनके अतिरिक्त धर्मपरीक्षा में बलि-बन्धन कथा (अकम्पनाचार्य मुनि कथा). मार्जार कथा, शिश्नछेदन कथा, खर सिरच्छेदन कथा, जल-शिला और वानर नृत्य कथा, कमण्डलु और गज कथा, अगस्त्य मुनि कथा, वृहतकुमारिका कथा, मयऋषि कोपीन कथा और मन्दोदरी पाराशर ऋषि और योजनगंधा कथा, उद्दालक और चन्द्रमति कथा, कर्णोत्पत्ति कथा, पांडव कथा, शृगाल कथा, राक्षस और वानर वंशोत्पत्ति कथा, कविट्ठ खादन कथा, रावणदसिर कथा, दधिमुख और जरासंध कथा जैसी अनेक पौराणिक कथाओं की तथ्यसंगत समीक्षा की गई है और उनके पीछे प्रच्छन्न मिथ्यात्व का खण्डन उनसे मिलती-जुलती कल्पित कथाओं की रचना करके किया गया है । यहीं कवि ने जैन परम्परा की रामकथा भी प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति में जैन परम्परा की यथार्थवादिता, उदारता और प्रगतिशीलता जैसे तत्त्व उजागर हो जाते हैं जो आज की पीढ़ी के लिए विश्वसनीय बन जाते हैं। इन विशेषताओं ने एक ओर जहाँ मिथ्यात्व-पोषण को समूल नष्ट किया है वहीं रत्नत्रय की त्रिवेणी को भी प्रवाहित किया है जिसमें अवगाहन कर सर्वसाधारण प्राणी भी निर्वाण प्राप्त कर सकता है । आख्यानों की काल्पनिकता स्पष्ट करने की दृष्टि से मनोवेग उसी रूप में कुछ अपनी ओर से मनगढन्त कथाएं प्रस्तुत करता है । उदाहरणतः - कमंडलु और गज कथा के सन्दर्भ में कहता है कि उसने भिंडी के पेड़ पर कमंडलु रखा जिसमें हाथी ने प्रवेश किया। लोग इस घटना को असम्भव मानते हैं। तब मनोवेग कहता है कि पुराणों में क्या यह नहीं लिखा है
SR No.524761
Book TitleJain Vidya 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1993
Total Pages102
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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