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________________ 30 ] [ जनविद्या-13 ज्ञानेन पुंसां सकलार्थसिद्धि:....... शौचक्षमासत्यतपोदमाद्या गुणाः समस्ताः क्षणतश्चलन्ति । ज्ञानेन होनस्य नरस्य लोके वात्याहता वा तरवोऽपि मूलात् । 2041 । शानेन पुंसां सकलार्थसिद्धिर्ज्ञानवृते काचन नार्थसिद्धिः । मानस्य मत्वेति गुणान् कदाचिन्जानं न मुञ्चन्ति महानुभावा. । 2021 गन्तुं समुल्लङध्य भवाटवीं यो ज्ञानं विना मुक्तिपुरी समिच्छेत् । सोऽन्धोऽन्धकारेषु विलाध्य दुर्ग वनं पुरं प्राप्तुमना विचक्षुः । 2011 -सुभाषितरत्नसंदोह --जिस प्रकार प्रांधी के वेग से वृक्ष मूल से उखड़कर गिर पड़ते हैं उसी प्रकार जो पुरुष ज्ञान से हीन होते हैं, अज्ञानमय जीवन जीते हैं, (प्रसंग आने पर) उनके शुचिता-पवित्रता-क्षमासत्य-तप-संयम आदि समस्त गुण क्षणमात्र में नष्ट हो जाते हैं। परन्तु ज्ञानी कितना भी संकट आने पर भी अपने गुणों से च्युत नहीं होते, दृढ़प्रतिज्ञ होकर गुणों का पालन करते हैं 12041 -इस संसार में समस्त पुरुषों को ज्ञान से ही समस्त प्रयोजनों की सिद्धि होती है। ज्ञान के बिना केवल क्रियाकांड से किंचित् मात्र भी इष्टसिद्धि नहीं होती। इस प्रकार ज्ञान का महत्त्व जानकर अपना हित चाहनेवाले संत-पुरुष ज्ञान को कभी भी छोड़ते नहीं। सदैव ज्ञान के उपार्जन में लगे रहते हैं । 2021 -जो पुरुष ज्ञान के बिना इस संसाररूपी पृथ्वी को पार करके मुक्तिपुरी को जाना चाहता है वह आँखों से हीन अन्धा पुरुष गहन अन्धकार में गहनवन को पार करके नगर को जाना चाहता है। अर्थात् जैसे अन्धे मनुष्य का रात्रि के घोर अन्धकार में गहन वन को पार करके नगर में पहुंचना सम्भव नहीं है वैसे ही ज्ञान के बिना संसाररूप गहनवन को पार करके मोक्ष प्राप्त करना सम्भव नहीं है ।2011 -अनु. पं. बालचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री
SR No.524761
Book TitleJain Vidya 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1993
Total Pages102
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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