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________________ जनविद्या-13 ] अप्रेल-1993 [ 21 अमितगति श्रावकाचार में पदस्थ ध्यान और शरीर के शक्तिकेन्द्र -डॉ. सोहनलाल देवोत आज कौन यह नहीं जानता कि एंगिल विशेष से कान्वेक्स लेन्स पर सूर्य की किरणों को एकत्र कर लिया जाए तो देखते-देखते अग्नि प्रकट हो जाती है। भाप को एक नली में एकत्र कर लिया जाए तो रेल का शक्तिशाली इंजन द्रुतगति से दौड़ने लगता है। बन्दूक की नली में थोड़ी सी बारूद अवरुद्ध कर लेने पर शीशे की गोली निशाने को प्रार-पार कर लेती है। एकत्रीकरण के ऐसे चमत्कार हम आये दिन देखते रहते हैं । मानव शरीर भी एक ऐसा विलक्षण यन्त्र है जिसमें जीवन-निर्वाह-क्रम का सहजरूप में होना ही नहीं वरन् यदि पूर्वाचार्यों द्वारा प्रणीत विधि-कर्म को क्रम से प्रयत्नपूर्वक अपनाया जाए तो उसमें सन्निहित उन प्रसुप्त ऊर्जा-केन्द्रों को जगाया जा सकता है । आज के वैज्ञानिक उपकरणों द्वारा प्रकृति की शक्तियों को नियन्त्रित कर उनसे आश्चर्यजनक कार्य लिये जा रहे हैं। यदि मानव के शरीरगत उन अदृश्य मर्मस्थल शक्तिकेन्द्रों को मन्त्रों या वर्णमन्त्रों के द्वारा उभारा या गुदगुदाया जाए तो उससे उद्दीप्त ऊर्जा से भी वे ही काम लिये जा सकते हैं जिन्हें बहुमूल्य वैज्ञानिक उपकरणों के माध्यम से किया जा शरीर के शक्तिकेन्द्रों को जगाने में आलम्बन रूप 'पदस्थ ध्यान' के बीजमन्त्रों पर प्रकाश डालने से पूर्व 'पदस्थ ध्यान' तथा शरीर के शक्ति-केन्द्र की अवधारणा को भी समझ लेना विषय के साथ न्यायसंगत होगा ।
SR No.524761
Book TitleJain Vidya 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1993
Total Pages102
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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