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________________ जनविद्या-13 ] अप्रेल-1993 [ 13 अमितगति श्रावकाचार में श्रावक की जीवनचर्या म. रमेशचन्द्र जैन प्राचार्य अमितगति द्वारा रचित श्रावकाचार अथवा उपासकाचार श्रावकाचारसाहित्य का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें श्रावक की जीवनचर्या कैसी हो, इस पर बहुत अच्छा प्रकाश डाला गया है । प्रत्येक श्रावक प्रातः उठकर पंचपरमेष्ठी को नमस्कार कर उनके गुणों का चिन्तन करता है । श्रावकाचार के प्रारम्भ में आचार्य प्रमितगति ने पंचपरमेष्ठी का जो स्मरण किया है, वह हृदयहारी है। अनन्तर सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र की स्थिरता को भावना कर सरस्वती से बुद्धि का विस्तार करने की प्रार्थना की गई है। यहां सरस्वती माता के समान प्रतिष्ठित है मातेव या शास्ति हितानि पुंसो रजः दधति सुखानि । समस्तशास्त्रार्थविचारदक्षा सरस्वती सा तमुतां मति मे ॥ 1.7 ॥ जो अज्ञानरूप रज को दूर करतीहुई सुखों को धारण कराती है तथा माता के समान हितों की शिक्षा देती है, समस्त शास्त्रों का अर्थ विचार करने में प्रवीण बह सरस्वती मेरी बुद्धि का विस्तार करे। ___गुरु शास्त्र-समुद्र के पारगामी और गुणों से गरिष्ठ होते हैं (1.8) । ऐसे गुरु की प्रशंसाकर काव्यकारों के अनुरूप दुर्जनों की निन्दा और सज्जनों की प्रशंसा की है (1.10) । दुर्जनों के भय से सज्जनों को उसी प्रकार अच्छे कार्यो का परित्याग नहीं करना चाहिए जिस
SR No.524761
Book TitleJain Vidya 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1993
Total Pages102
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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