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जनविद्या-12
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षट् प्रावश्यक गुरण का चार्ट
नाम 1. देव
भेद
(अ) अरहन्त और (ब) सिद्ध
2. शास्त्र
(अ) आचार्य (ब) उपाध्याय और
(स) साधु 4. तप, ध्यान
(अ) अन्तर और (ब) बाह्य 5. समिति
(अ) ईर्या (ब) भाषा और (स) एषणा
(द) आदान, निक्षेपण और (व) प्रतिष्ठापन 6. दान
(अ) आहार (ब) औषध (स) अभय और
(द) विद्या इनके अतिरिक्त आठ मूलगुणों का पालन करना भी व्यक्ति (श्रावक) के लिए अनिवार्य बताया गया है । इसके पालन करने से व्यावहारिक जीवन में समता, मैत्री तथा सौहार्द की स्थिति उभरती है । ये आठ मूलगुण निम्नलिखित हैं
1. मधु त्याग 2. मद्य त्याग 3. मांस त्याग 4. अहिंसा 5. सत्य 6. अचौर्य 7. अपरिग्रह 8. ब्रह्मचर्य ।
इन आधारों पर यह सहज ही कहा जा सकता है कि प्राचार्य पूज्यपाद युगचेतना करने में सर्वथा सफल रहे हैं। उन्होंने लोक कल्याण के लिए ही नहीं अपितु जीव मुक्ति के लिए भी दिशा दर्शन दिया।
आज के परिप्रेक्ष्य में भी व्यक्ति इन तमाम विशिष्टताओं को अपने जीवन में ढाल ले तो ये विषम समस्याएँ स्वतः ही समाप्त हो जाएँगी। फिर शायद समस्याएं, समस्या न होकर सामान्य जीवन जीने के लिए एक स्थिति होगी, एक प्रक्रिया होगी। शायद आज उसी की अपेक्षा है।
मंगल कलश 394, सर्वोदयनगर, आगरा रोड.
अलीगढ़ (उ. प्र.) 202 001