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________________ 28 जैनविद्या-12 उपशम से देशघाती स्पर्द्धकवाली सम्यक्त्व प्रकृति के उदय में जो तत्त्वार्थश्रद्धान होता है, वह क्षायोपशमिक सम्यक्त्व है । (2.5) क्षायोपशमिक चारित्र ___ अनन्तानुबंध्यप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानद्वादशकषायोदयक्षयात्सदुपशमाच्च संज्वलनकषायचतुष्टयान्यतमं देशधातिस्पर्द्धकोदये नोकषायनवकस्य यथासंभवोदये च निवृत्तिपरिणाम आत्मनः क्षायोपशमिकं चारित्रम् । अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानावरणः और प्रत्याख्यानावरण इन बारह कषायों के उदयाभावी क्षय होने से और इन्हीं के सदवस्थारूप उपशम होने से तथा चार संज्वलनों में से किसी एक देशधाती प्रकृति के उदय होने पर और नौ नोकषायों का यथासम्भव उदय होने पर जो त्यागरूप परिणाम होता है, वह क्षायोपशमिक चारित्र है । (2.5) संयमासंयम अनन्तानुबन्ध्यप्रत्याख्यानकषायाष्टकोदयक्षयात्सदुपशमाच्च प्रत्याख्यानं कषायोदये संज्वलनकषायस्य देशधातिस्पर्द्धकोदये नोकषायनवकस्य यथासंभवोदये च विरताविरत परिणामः क्षायोपशमिकः संयमासंयम इत्याख्यायते-अनन्तानुबन्धी और अप्रत्याख्यानावरण इन आठ कषायों के उदयाभावी क्षय होने से सदवस्थारूप उपशम होने से तथा प्रत्याख्यानावरण कषाय के और संज्वलन कषाय के देशधाती स्पर्द्धकों के उदय होने पर तथा नौ नोकषायों का यथासंभव उदय होने पर जो विरताविरतरूप परिणाम होता है वह संयमासंयम कहलाता है । (2.5) मिथ्यादर्शन मिथ्यादर्शनकर्मण उदयात्तत्त्वार्थाश्रद्धानपरिणामो मिथ्यादर्शनम्-मिथ्यादर्शन कर्म के उदय से जो तत्त्वों का अश्रद्धान रूप परिणाम होता है वह मिथ्यादर्शन है । (2.6) अज्ञान ज्ञानावरणकर्मण उदयात्पदार्थानबोधी भवति तदज्ञानमौदयिकम्-ज्ञानावरणकर्म के उदय से पदार्थ का बोध नहीं होने से जो अज्ञान होता है वह अज्ञान प्रौदयिक है । (2.5) भावलेश्या __ भावलेश्या कषायोदयरञ्जिता योगप्रवृत्तिरिति औदयिकी-कषाय के उदय से रञ्जित योगप्रवृत्ति को भावलेश्या कहते हैं । यह औदयिकी होती है । (2.6) जीवत्व __जीवत्वं चैतन्यमित्यर्थ:-जीवत्व का अर्थ चैतन्य है । (2.7) भव्य सम्यग्दर्शनादिभावेन भविष्यतीति भव्य:- जिसके सम्यग्दर्शन आदि भाव प्रकट होने की योग्यता है वह भव्य कहलाता है । (2.7) उपयोग उभयनिमित्तवशादुत्पद्यमानश्चतन्यानुविधायीपरिणाम उपयोगः- जो अन्तरङ्ग और
SR No.524760
Book TitleJain Vidya 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size10 MB
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