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________________ जैनविद्या-12 भाव वर्तमान तत्पर्यायोपलक्षितं द्रव्यं भाव:-वर्तमान पर्याय से युक्त द्रव्य को भाव कहते हैं । (1.5) नाम जीव जीवनगुणमनपेक्ष्य यस्य कस्यचिन्नाम क्रियमाणं नाम जीव:-जीवन गुण की अपेक्षा न करके जिस किसी का "जीव" ऐसा नाम रखना नाम जीव है । ( 1.5) स्थापना जीव अक्षनिक्षेपादिषु जीव इति वा मनुष्यजीव इति व्यवस्थाप्यमानः स्थापना जीव:अक्षनिक्षेप आदि में यह जीव है, या मनुष्य जीव है, ऐसा स्थापित करना स्थापना जीव है । (1.5) पागम द्रव्य जीव जीवप्राभृतज्ञायी मनुष्यजीवप्राभृतज्ञायी वा अनुपयुक्त प्रात्मा प्रागमद्रव्यजीव:जो जीव विषयक या मनुष्य जीवविषयक शास्त्र को जानता है, किन्तु वर्तमान में उसके उपयोग से रहित है, वह आगम द्रव्य जीव है । ( 1.5) ज्ञायक शरीर ज्ञातुर्यच्छरीरं त्रिकालगोचरं तज्ज्ञायक शरीरम्-ज्ञाता का जो त्रिकालगोचर शरीर है, उसे ज्ञायक शरीर कहते हैं । (1.5) मनुष्यमावि जीव गत्यन्तरे जीवो व्यवस्थितो मनुष्यभवप्राप्तिं प्रत्यभिमुखो मनुष्यभावि जीव:-जो दूसरी गति में विद्यमान है, वह जब मनुष्यभव को प्राप्त करने के लिए सम्मुख होता है, तब वह मनुष्यभावि जीव कहलाता है । (1.5) प्रागम भाव जीव जीवप्राभृतविषयोपयोगाविष्टो मनुष्यजीवप्राभृतविषयोपयोगयुक्तो वा प्रात्मा अागमभावजीव:- जो आत्मा जीवविषयक शास्त्र को जानता है और उसके उपयोग से युक्त हैं अथवा मनुष्य जीव विषयक शास्त्र को जानता है और उसके उपयोग से युक्त है, वह आगमभाव जीव कहलाता है । (1.5) नोग्रागमभाव जीव जीवनपर्यायेण मनुष्य जीवत्वपर्यायेण वा समाविष्ट आत्मा नो आगमभाव जीव:जीवन पर्याय अथवा मनुष्य जीवन पर्याय से युक्त आत्मा नोप्रागमभाव जीव कहलाता है । (1.6) द्रव्यार्थिक द्रव्यमर्थः प्रयोजनमस्येति द्रव्याथिकः द्रव्य जिसका प्रयोजन है, वह द्रव्यार्थिक नय है । (1.6)
SR No.524760
Book TitleJain Vidya 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size10 MB
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