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________________ श्री पूज्यपाद सम्बन्धी कुछ ऐतिहासिक अभिलेख श्री कुन्दनलालजी जैन सारस्वताचार्य श्री पूज्यपाद स्वामी अपर नाम देवनन्दी अपने समय के विख्यात दार्शनिक, श्रेष्ठ वैय्याकरण, उच्च कोटि के छन्दशास्त्र एवं आयुर्वेद विज्ञान के वेत्ता एवं सरस साहित्यिक कवि थे । उनका समय पाँचवीं सदी का उत्तरार्द्ध एवं छटी सदी का पूर्वार्द्ध निश्चित होता है। उनकी कृतियों में सर्वार्थ सिद्धि, जैनेन्द्र-व्याकरण, समाधितन्त्र, इष्टोपदेश आदि, संस्कृत साहित्य की अनुपम निधियों में सम्मिलित की जाती हैं। वे अपने समय के साहित्य गगन के ऐसे जाज्वल्यमान दिव्य दिवाकर थे कि उनकी प्रतिभा प्रकाश से निखिल ब्रह्माण्ड आलोकित हो उठा था, इसीलिए तत्कालीन एवं उनके बाद के सभी विद्वानों ने उनका समादरपूर्वक पुण्य-स्मरण किया है । आधुनिक युग में श्री पूज्यपाद एवं उनके साहित्य पर पर्याप्त शोध-खोज हो चुकी हैं। अतः हम यहाँ उन सबकी चर्चा न करते हुए केवल कुछ उन उद्धरणों को प्रस्तुत कर रहे हैं जिनमें उनका नामोल्लेख करते हुए उनकी स्तुति की गई है । ये उद्धरण विभिन्न ग्रन्थों पट्टावलियों गुर्वावलियों, शिलालेखों, ग्रन्थ प्रशस्तियों एवं प्राचार्यों की वाणी में प्रचुरता से बिखरे पड़े हैं। प्राचार्य देवसेन ने अपने “दर्शनसार" ग्रन्थ में जो सं 990 में रचा गया था श्री पूज्यपाद का समय निर्धारण करते हुए लिखा है : सिरि पुज्जपाद सोसो दाविड़संघस्स कारणो दुट्ठीं। णामेण वज्जणंदि पाहुडवेदी महासत्तों ॥ पंचसए छन्वीसे विक्कमरामस्स मरणपत्तस्स । दक्खिरणमहुराजादो दाविडसंघो महामोहो ।
SR No.524760
Book TitleJain Vidya 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size10 MB
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