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________________ समयसार का दार्शनिक पृष्ठ -डॉ० दरबारीलाल कोठिया प्राथमिक 'समयसार' प्राचार्य कुन्दकुन्द की, जिन्हें शिलालेखों में 'कोण्डकुन्द' के नाम से उल्लेखित किया गया है, एक उच्चकोटि की आध्यात्मिक रचना है । यों उन्होंने अनुश्रुति के अनुसार 84 पाहुड़ों (प्राभृतों, उपहारस्वरूप, प्रकरणग्रन्थों) तथा प्राचार्य पुष्पदन्तभूतबली द्वारा रचित 'षट्खण्डागम' मूलागम की विशाल टीका की भी रचना की थी। पर आज वह समग्र ग्रन्थ-राशि उपलब्ध नहीं है फिर भी उनके जितने ग्रन्थ प्राप्त हैं वे इतने महत्त्वपूर्ण हैं कि उनसे समग्र जैन वाङ्मय समृद्ध एवं देदीप्यमान है । उनके इन उपलब्ध ग्रन्थों का जिनकी संख्या 21 है, परिचय हमने अन्यत्र दिया है । ध्यातव्य है कि कुन्दकुन्द ने अपने तमाम ग्रन्थ उस समय की प्रचलित प्राकृत, पाली और संस्कृत इन तीन प्राच्य भारतीय प्रमुख भाषाओं में से प्राकृत में रचे हैं । प्रश्न हो सकता है कि कुन्दकुन्द ने अपनी ग्रन्थ-रचना के लिए प्राकृत को ही क्यों चुना? पाली या संस्कृत को क्यों नहीं ? इसके दो कारण हैं । एक तो यह कि प्राकृत साधारणजनभाषा थी, उसके बोलनेवाले सामान्यजन अधिक थे और कुन्दकुन्द तीर्थकर महावीर के उपदेश को जन-साधारण तक पहुंचाना चाहते थे । दूसरे, षट्खण्डागम, कषायपाहुड जैसे दिगम्बर प्रागम-ग्रन्थों के प्राकृत (शौरसेनी) में निबद्ध होने से उसकी सुदीर्घ परम्परा भी उन्हें प्राप्त थी। अतएव अपनी ग्रन्थ-रचना के लिए उन्होंने प्राकृत को ही अपनाना उपयुक्त समझा । उनकी यह प्राकृत शौरसेनी-प्राकृत है । यद्यपि कुन्दकुन्द की मातृ-भाषा
SR No.524759
Book TitleJain Vidya 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1990
Total Pages180
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size15 MB
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