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________________ हेमचन्द्र-प्राकृत-व्याकरण सूत्र-विवेचन -डॉ. कमलचन्द सोगाणी हेमचन्द्र की अपभ्रंश व्याकरण के अनुसार 7 और 8 अंकों में संज्ञा व सर्वनाम के सूत्रों का विवेचन प्रस्तुत किया गया है । 8वें अंक में संज्ञा व सर्वनामों के रूप जो सूत्रों से फलित होते हैं, दिये गये हैं । यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि अपभ्रंश साहित्य में प्राकृत के रूपों का प्रयोग शताब्दियों तक किया जाता रहा है । अपभ्रंश साहित्य को समझने के लिए प्राकृत के रूपों का ज्ञान आवश्यक है । अत: प्राकृत के संज्ञा-सूत्रों का विवेचन इस अंक में प्रस्तुत किया जा रहा है । संज्ञा-रूप भी इस अंक में दिये गये हैं । अगले अंक में सर्वनाम के सूत्रों का विवेचन प्रस्तुत किया जायेगा। सूत्र-विवेचन 1. अतः से डों: 3/2 प्रतः से डों: [(सेः + (डो:)] अतः (अत्) 5/1 से: (सि) 6/1 डो: (डो) ।।1 (प्राकृत में) अत् से परे सि के स्थान पर डो→पो (होता है)। प्रकारान्त पुल्लिग शब्दों से परे सि (प्रथमा एक वचन के प्रत्यय) के स्थान पर पो होता है । देव (पु.)-(देव+सि) = (देव+ो ) = देवो (प्रथमा एकवचन)
SR No.524758
Book TitleJain Vidya 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1988
Total Pages132
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size12 MB
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