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________________ 73 जनविद्या 23. संसारह भय-भीयएण, जोगिचन्द-मुणिएण । अप्पा-संबोहण कया, दोहा इक्कमणेण ।। योगसार, 108 24. योगसार, 26, 57, 105 । 25. कबीर 'ग्रन्थावली, पृ. 105 । 26. कबीर ग्रन्थावली, पृ. क्रमश: 89, 56, 323, 227, 73 । 27. वही, परया को अग, पृ. 111 । 28. कबीर-डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी, पृ. 52.3 । 29. हिन्दी की निर्गुण काव्यधारा और उसकी दार्शनिक पृष्ठभूमि, पृ. 354 । 30. पांचरात्र, लक्ष्मीसंहिता, साधनांक, पृ. 60 । 31. सहज-सहज सब कोऊ कहे, सहज न चीन्है कोय । जो सहजै साहब मिल सहज कहावै सोय ।।-संत साहित्य, पृ. 222.3 32. कबीरवाणी, पृ. 262 । 33. जं सिव-दंसणि परम-सुहं पावहि झाणु करन्तु । तं सुहु भुवणि वि अत्थि णवि मेल्लिवि देउ अणन्तु ॥ प. प्र. 1.116। जं मुणि लहइ अणन्त-सुहु णिय-अप्पा झायन्तु । तं सुहु इन्दु वि णवि लहइ देविहिं कोडिरमन्तु ॥ 117 ।। 34. कबीर ग्रंथावली, पृ. 110 । 35. वही, पृ. 136 ।
SR No.524758
Book TitleJain Vidya 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1988
Total Pages132
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size12 MB
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