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________________ कविमनीषी जोइंदु का आध्यात्मिक शिखरकाव्य परमात्मप्रकाश -डॉ. श्रीरंजन सूरिदेव अपभ्रंश के बहुश्रुतचिन्तक कवि जोइंदु (योगीन्द्राचार्य या योगीन्दु) द्वारा रचित आध्यात्मिक काव्य ‘परमात्मप्रकाश' (अपभ्रंश परमप्पयासु) अपभ्रंश के मुक्तक-काव्यों में शिखरस्थ है। कवि जोइंदु का विस्तृत प्रत्यक्ष परिचय उपलब्ध नहीं है। इस संदर्भ में 'अपभ्रंश-साहित्य' के यशोधन लेखक डॉ. हरिवंश कोछड़ ने यथाप्राप्य साक्ष्य-सामग्री के आधार पर अपने जिस अनुमान को अक्षरबद्ध किया है उससे जोइंदु का एक हल्का-सा सांकेतिक परिचय प्राप्त होता है। प्राकृत और अपभ्रंश की अनेक प्राचीन कृतियों के प्रथितयशा सम्पादक डॉ. आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये ने 'परमात्मप्रकाश' का वैदुष्यपूर्ण सम्पादन किया है और उनका जोइंदुविषयक एक विशिष्ट लेख (जोइंदु एण्ड हिज अपभ्रंश वर्क्स) पूना के भाण्डारकर अोरियेन्टल रिसर्च इंस्टीट्यूट की वार्षिकी' (एनल्स) के 12वें भाग में (सन् 1931 ई०, पृष्ठ 161162) प्रकाशित है । डॉ. उपाध्ये जोइंदु के 'परमात्मप्रकाश' को आचार्य हेमचन्द्र के 'शब्दानुशासन' से पूर्व की रचना मानते हैं क्योंकि परमात्मप्रकाश में हेमचन्द्र द्वारा निर्दिष्ट अपभ्रंश की भाषिक प्रकृति और प्रवृत्ति के कतिपय नियमों की उपेक्षा हुई है । अगर ‘परमात्मप्रकाश' की रचना 'शब्दानुशासन' के बाद होती तो जोइंदु कवि प्राचार्य 'हेमचन्द्र जैसे अगडधत्त वैयाकरण के अनुशासन की अवहेलना कदापि नहीं करते। इसके अतिरिक्त ज्ञातव्य है कि
SR No.524758
Book TitleJain Vidya 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1988
Total Pages132
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size12 MB
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