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________________ आरम्भिक जनविद्या का नवम अंक पाठकों तक पहुंचाते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता है । इस अंक में ईसा की छठी शताब्दी के आध्यात्मिक कवि जोइन्दु के व्यक्तित्व और कर्तृत्व को विभिन्न विद्वानों द्वारा विभिन्न दृष्टियों से प्रस्तुत किया गया है । आचार्य जोइन्दु का अपभ्रंश भाषा पर अपूर्व अधिकार है । वे द्वितीय श्रुतस्कन्ध की परम्परा में शुद्ध अध्यात्म का उपदेश करनेवाले कुन्दकुन्दाचार्य के परवर्ती अध्यात्म कवि हैं । परमात्मप्रकाश और योगसार उनकी प्रसिद्ध रचनाएं हैं । उनकी रचनाओं में आत्मानुभूति व्याप्त है । बहिरात्मा से परमात्मा होने की यात्रा का उसमें काव्यमय वर्णन है । उनकी रहस्यमयी रचनाओं का प्रभाव परवर्ती अपभ्रंश कवियों और हिन्दी के सन्त कवियों पर प्रचुरता से पड़ा है । विख्यात सन्त कवि कबीर के क्रान्तिकारी आध्यात्मिक विचारों पर जोइन्दु का प्रभाव सरलता से देखा जा सकता है । इनकी रचनाओं का विषय साम्प्रदायिक न होकर शुद्ध आध्यात्मिक है इसलिए इसकी उपादेयता सर्वत्र है । जोइन्दु के प्रात्मा सम्बन्धी विचार सार्वकालिक और सार्वभौमिक हैं। भौतिकता से उत्पन्न संघर्षों से भरेपुरे आज के मानवीय जीवन के लिए वे परम उपयोगी हैं । उनकी इस विशेषता के कारण ही उन्हें लोकदर्शी परम्परा का संदेशवाहक भी कहा जा सकता है । वे कवि की अपेक्षा सन्त और आचार्य अधिक हैं। अपने विचारों को उन्होंने सरल कविता में प्रकट किया है । उनकी पुनरुक्तियां श्रोताओं और पाठकों के मानस पर उनके द्वारा अभिव्यक्त आध्यात्मिकता का अमिट प्रभाव बनाये रखने के उद्देश्य को लिये हुए है । उनके उपदेशों में उपनिषदों जैसा प्रवाह और सरसता है, परम मांगलिकता है । ___ इस अंक में प्राचार्य जोइन्दु के व्यक्तित्व और कर्तृत्व से सम्बन्धित ये विषय विभिन्न शीर्षकों में प्रतिपादित हैं-आत्मा और परमात्मा विषयक धारणा, बन्ध-मोक्ष सम्बन्धी विचार, परमात्मप्रकाश और योगसार का विश्लेषण, उनका काव्यशास्त्रीय मूल्यांकन और हिन्दी-सन्त कवियों पर प्रभाव । अमृताशीति जोइन्दु की कृति है या नहीं इस विषय पर विद्वानों में ऊहापोह तो हो चुका है पर अन्तिम निर्णय होना अवशिष्ट है इसीलिए 'जोइन्दु और अमृताशीति' इस शीर्षक से एक लेख यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है । विद्वान् इस पर विचार करें और तथ्यात्मक निर्णय से हमें अवगत करें।
SR No.524758
Book TitleJain Vidya 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1988
Total Pages132
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size12 MB
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