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________________ जैनविद्या 89 हरि (पु.)-(हरि + ङसि) = (हरि+णो) = हरिणो (पंचमी एकवचन) (हरि+ ङस्) = (हरि+ णो) = हरिणो (षष्ठी एकवचन) साहु (पु.)-(साहु + ङसि) = (साहु + णो) = साहुणो (पंचमी एकवचन) (साहु + ङस्) = (साहु +णो) = साहुणो (षष्ठी एकवचन) वारि (नपुं.)-(वारि+ ङसि) = (वारि+ णो) = वारिणो (पंचमी एकवचन) - (वारि+ ङस्) = (वारि+ णो) = वाणिो (षष्ठी एकवचन) महु (नपुं.)-(महु + ङसि) = (महु + णो) = महुणो (पंचमी एकवचन) (महु +डस्) = (महु + णो) = महुणो (षष्ठी एकवचन) गामणी (पु.)-(गामणी + ङसि) = (गामणि+णो) = गामणिणो (पंचमी एकवचन) (गामणी + ङस्) = (गामणि + णो) = गामणिणो (षष्ठी एकवचन) सयंभू (पु.)-(सयंभू + ङसि) = (सयंभु + णो) = सयंभुणो (पंचमी एकवचन) (सयंभू + ङस्) = (सयंभु+णो) = सयंभुणो (षष्ठी एकवचन) 21. टो णा 3/24 टोणा [(ट:)+ (णा)] ट: (टा) 6/1 रणा (णा) 1/1 (प्राकृत में) (इकारान्त-उकारान्त) (पुल्लिग-नपुंसकलिंग) (शब्दों में) टा के स्थान पर णा (होता है)। इकारान्त-उकारान्त पुल्लिग-नपुंसकलिंग शब्दों में टा (तृतीया एकवचन का प्रत्यय) के स्थान पर णा होता है। दीर्घ स्वर हस्व हो जाता है। (3/43) हरि (पु.)-(हरि+टा) = (हरि+णा) = हरिणा (तृतीया एकवचन) साहु (पु.)-(साहु+टा) = (साहु+णा) = साहुणा (तृतीया एकवचन) वारि (नपुं.)-(वारि+टा) = (वारि+णा) = वारिणा (तृतीया एकवचन) महु (नपुं.)-(महु+टा) = (महु + णा) = महुणा (तृतीया एकवचन) गामणी (पु.)-(गामणी+टा) = (गामणि+णा) = गामणिणा(तृतीया एकवचन) सयंभू (पु)-(सयंभू+टा) = (सयंभु+णा) = सयंभुणा (तृतीया एकवचन) 22. क्लीबे स्वरान्म से: 3/25 क्लीबे स्वरान्म से: [(स्वरात्) + (म्)] से: क्लीबे (क्लीब) 7/1 स्वरात् (स्वर) 5/1 म् (म्) 1/1 से: (सि) 6/1 (प्राकृत में) नपुंसकलिंग में स्वर से परे सि के स्थान पर 'म्' (होता है)।
SR No.524758
Book TitleJain Vidya 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1988
Total Pages132
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size12 MB
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