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________________ जैनविद्या तुम्ह (पु., नपुं, स्त्री.)-(तुम्ह+सि) = तउ, तुझ और तुध्र (पंचमी एकवचन) (तुम्ह+ ङस् ) = तउ, तुझ और तुध्र (षष्ठी एकवचन) 44. भ्यसाम्भ्यां तुम्हहं 4/373 भ्यसाम्भ्यां तुम्हहं [(भ्यस्) + (प्राम्भ्याम्) + (तुम्हहं)] [(भ्यस्)-(प्राम्) 3/2] तुम्हहं (तुम्हहं)] (युष्मद्→ तुम्ह से परे) भ्यस् और प्राम् सहित तुम्हहं (होता है)। अपभ्रंश में पुल्लिग, नपुंसकलिंग व स्त्रीलिंग में युष्मद् → तुम्ह से परे भ्यस् (पंचमी बहुवचन का प्रत्यय) और पाम् (षष्ठी बहुवचन का प्रत्यय) सहित तुम्हहं होता है । तुम्ह (पु., नपुं., स्त्री.) - . (तुम्ह+ भ्यस्) = तुम्हहं (पंचमी बहुवचन) (तुम्ह+प्राम्) = तुम्हहं (षष्टी बहुवचन) 45. तुम्हासु सुपा 4/374 तुम्हासु (तुम्हासु) 1/1 सुपा (सुप्) 3/1 (युष्मद्→ तुम्ह से परे) सुप् सहित तुम्हासु (होता है)। अपभ्रंश में पुल्लिग, नपुंसकलिंग व स्त्रीलिंग में युष्मद् →तुम्ह से परे सुप् (सप्तमी बहुवचन का प्रत्यय) सहित तुम्हासु होता है । तुम्ह (पु., नपुं., स्त्री.)-(तुम्ह + सुप्) = तुम्हासु (सप्तमी बहुवचन) 46. सावस्मदो हउं 4/375 साबस्मदो हर्ष [(सौ) + (अस्मदः) + (हउं)] सौ (सि) 7/1 अस्मदः (अस्मद्) 5/1 हउँ (हउं) 1/1 अस्मद् → अम्ह से परे सि होने पर (दोनों के स्थान पर) हउं (होता है)। अपभ्रंश में पुल्लिग, नपुंसकलिंग व स्त्रीलिंग में अस्मद् → प्रम्ह से परे सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) होने पर दोनों के स्थान पर हउं होता है । प्रम्ह (पु., नपुं., स्त्री.) - (अम्ह+सि) = हउं (प्रथमा एकवचन) 47. जस्-शसोरम्हे अम्हइं 4/376 जस् [(शसोः) + (अम्हे)] अम्हई [(जस्)-(शस्) 7/2] अम्हे (अम्हे) 1/1 अम्हई (अम्हई) 1/1 (अस्मद्-अम्ह से परे) जस् और शस् होने पर (दोनों के स्थान पर) प्रम्हे और प्रम्हइं (होते हैं)।
SR No.524757
Book TitleJain Vidya 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1988
Total Pages112
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size11 MB
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