________________
जैन विद्या
मुनिश्री कनकामर अपभ्रंश साहित्याकाश के ज्योतिर्मय नक्षत्र हैं । उनकी इकलौती रचना 'करकण्डचरिउ' काव्य के अनेक गुणों से मंडित है। भाव और कला की दृष्टि से हिन्दी के सूफी कवि जायसी के 'पद्मावत' पर 'करकण्डचरिउ' का प्रभाव पर्याप्त रूप से परिलक्षित है ।
1. विचार और विश्लेषण, डॉ. नगेन्द्र, पृष्ठ 3 । 2. भविसयत्तकहा का साहित्यिक महत्त्व, डॉ. आदित्य प्रचण्डिया 'दीति', जैनविद्या,
धनपाल अंक, अप्रेल 1986, पृष्ठ 29 । 3. पट्टावली समुच्चय, पृष्ठ 26। । 4. (क) 'मेरा अनुमान है कि वर्तमान मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के समीप की
यही वह प्राचीन नगरी है जिसका उल्लेख मुनि कनकामर ने 'आसाइयणयरि' के रूप में किया है तथा जिस पर 'आशापुरी' ऐसा प्राचीन टिप्पण पाया जाता है।'
-करकण्डचरिउ, सम्पादक-डॉ० हीरालाल जैन, प्रस्तावना, पृष्ठ-10 (ख) 'इटावा से 9 मील की दूरी पर आसयखेड़ा नाम का ग्राम है। यह ग्राम जैनियों का प्राचीन स्थान है । अत: सम्भव है कि यह प्रासाइय नगरी वर्तमान आसयखेड़ा ही हो।'
-तीर्थंकर महावीर और उनकी प्राचार्य परम्परा, भाग-4,
डॉ० नेमिचन्द्र, पृष्ठ 160 । - (ग) 'औरंगाबाद जिले के प्रसाई नामक स्थान में इस ग्रन्थ की रचना की थी।'
- -अपभ्रंश प्रवेश, विपिन बिहारी त्रिवेदी, पृष्ठ 30 । (घ) 'कनकामर के विषय में इतना ही मालूम है कि वे "आसाइय" नगरी के रहनेवाले थे जो सम्भवतः बुंदेलखण्ड में कहीं था।'
-हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग, डॉ० नामवर सिंह, पृष्ठ 210-11 । 5. करकण्डचरिउ, सम्पादक-डॉ० हीरालाल जैन, 10.28.1.4, पृष्ठ 106 । 6. तीर्थंकर महावीर और उनकी प्राचार्य परम्परा, खण्ड 4, डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री,
पृष्ठ 160 । 7. करकण्डचरिउ, सम्पादक-डॉ० हीरालाल जैन, प्रस्तावना, पृष्ठ 12 । 8. अपभ्रंश काव्य परम्परा और विद्यापति, अम्बादत्त पंत, पृष्ठ 279 । 9. अपभ्रंश भाषा और साहित्य, डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन, पृष्ठ 118। 10. अपभ्रंश साहित्य, हरिवंश कोछड़, पृष्ठ 192 ।