SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन विद्या सूत्र - विवेचन 1. स्यमोरस्योत् 2. सौ पुंस्योद्वा 3. एट्टि 4/331 स्वमोरस्योत् [ (सि) + (प्रमो:) + (अस्य) + (उत्) ] [(सि) - (म्) 6 / 2] श्रस्य ( अ ) 6 / 1 उत् ( उत्) 1 / 1 । अकारान्त ( शब्दों) के परे 'सि' और 'अम्' के स्थान पर उत्- 'उ' (होता है) । अकारान्त पुल्लिंग और नपुंसकलिंग शब्दों के परे सि (प्रथमा एकवचन के प्रत्यय ) श्रम् ( द्वितीया एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'उ' होता है । (देव + सि) = ( देव + उ ) = देवु (देव + श्रम् ) = ( देव + उ ) = देवु ( कमल + सि) = ( कमल + उ ) = कमलु ( कमल + प्रम् ) = ( कमल + उ ) = कमलु देव (पु.) कमल (नपुं. ) 85 4/332 पुंस्योद्वा [ (पुंसि ) + (प्रोत्) + (वा) ] (स) 7 / 1 पुंसि (पुंस) 7 / 1 प्रोत् (श्रोत्) 1 / 1 वा ( अ ) = विकल्प से । ( प्रकारान्त) पुल्लिंग ( शब्दों) में 'सि' परे होने पर विकल्प से ( उसका ) प्रोत् 'नो' (होता है) । प्रकारान्त पुल्लिंग शब्दों में सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर विकल्प से उसका 'प्रो' हो जाता है । देव (पु.) - ( देव + सि) = ( देव + श्रो) = देवो (प्रथमा एकवचन ) । (प्रथमा एकवचन ) ( द्वितीया एकवचन ) (प्रथमा एकवचन ) ( द्वितीया एकवचन ) 4/333 एट्टि [ ( एत्) + (टि)] एत् ( एत् ) 1 / 1 टि (टा) 7/1 (अकारान्त ) ( शब्दों में ) 'टा' परे होने पर ( अन्त्य 'प्र' का) 'ए' (होता है)। अकारान्त पुल्लिंग और नपुंसकलिंग शब्दों में टा (तृतीया एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर अन्त्य 'म' का 'ए' हो जाता है । देव (पु.) - ( देव + टा) = ( देवे + टा ) टा= ण और अनुस्वार (-) (4 /342) .. (देवे +टा) = ( देवे + ण) = देवेण ( तृतीया एकवचन ) 4. ङिनेच्च (देवे +टा) = (देवे + ) = देवें (तृतीया एकवचन ) कमल (नपुं) – (कमल +टा) = ( कमले +टा) टा=ण और अनुस्वार (-) (4/342) .. ( कमले + टा ) = ( कमले = रण) = कमलेण (तृतीया एकवचन ) (कमले + टा) = (कमले + 2 ) = कमलें (तृतीया एकवचन ) 4/334 ङिच्च [ (ङिना ) + (इत्) + (च) ] ङिना (ङि) 3 / 1 इत् ( इत्) 1 / 1 च (प्र) = मौर । ( प्रकारान्त शब्दों में ) ( ङि परे होने पर ) कि सहित ( प्रन्त्य प्र ) ( के स्थान पर ) '
SR No.524756
Book TitleJain Vidya 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages116
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy