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________________ जनविद्या 53 परबसुरयहो [(पर) वि-(वसु)-(रय)146/1] अंगारयहो (मंगारय)15 6/1 सूलिहि सूलिहिं (सूली) 7/2 भरणं (भरण) 1/1 वि जायं (जाय) भूक 1/1 अनि मरणं (मरण) 1/1। ___ इय (इम) 2/1 सवि णिएवि (णिप्र) संकृ जणो (जण) 1/1 तो (म)=उस समय में वि (म)=भी मूढमणो (मूढमण) 1/1 वि चोरी (चोरी) 2/1 करइ (कर) व 3/1 सक गउ (म)=नहीं परिहरइ (परिहर) व 3/1 सक । ... (2) ___जो (ज) 1/1 सवि परजुवइ [(पर) वि-(जुवइ) 2/1] इह (म)=इस लोक में पहिलसइ (प्रहिलस) व 3/1 सक सो (त) 1/1 सवि जीससइ (णीसस16) व 3/1 प्रक गायह (गा-+गाय) व 3/1 सक हसइ" (हस) व 3/1 सक । 6 (3) (12) ___ सहिकरण (सह) संकृ जए (जन) 7/1 रिणवडइ (णिवड) व 3/1 अक गरए (परम) 7/1 होऊ1 (होस) भूकृ 1/1 प्रबुहा (अबुह) 1/1 वि रामण (रामण)1/1 पमुहा (पमुन) 1/1 वि। परयाररया [(पर) वि-(यार)-(रय) भूक 1/1 अनि] चिर (म)=आखिरकार खयहो10 (खय) 6/1 गया (गय) भूकृ 1/1 पनि सत्त (सत्त) 1/2 वि वि (अ)=समुच्चय अर्थ में, वसणा (वसण) 1/2 एए (एम) 1/2 सवि कसणा (कसण) 1/2 वि। (13) पर-द्रव्य में अनुरक्त होने के कारण अंगारक (चोर) के द्वारा सूलियों पर धारण करनेवाला मरण प्राप्त किया गया (1) । इसको जानकर भी मनुष्य उस समय (चोरी करने के समय) में मूर्ख (बन जाता है) (और) चोरी करता है । (दुःख है कि वह) चोरी करने को नहीं छोड़ता है (2)। जो अन्य की स्त्री को चाहता है, वह (उससे) मिलता-जुलता है, (उसकी) प्रशंसा करता है (और) (उसके लिए) लालायित रहता है (3) । जगत् में (अपमान) सहकर (वह) नरक में गिरता है । आदरणीय रावण (भी) अज्ञानी बना (और) पर-स्त्री में अनुरक्त हुआ (12)। आखिरकार विनाश को पहुंच गया। (इस तरह से) ये सातों व्यसन अनिष्टकर (होते हैं) (13)। 14, 15. कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हे. प्रा. व्या. 3-134) 16. निश्वस्=णीसस लालायित होना, Monier William, Sanskrit Eng. ___Dich. See श्वस् । 17. हस्=मिलना-जुलना, आप्टे, संस्कृत-हिन्दी कोश । 18. मात्रा के लिए 'उ' को 'ऊ' किया गया है । 19. कभी कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर पष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हे. प्रा. का. 3-134)
SR No.524756
Book TitleJain Vidya 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages116
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size12 MB
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