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जनविद्या
लावण्य और सौभाग्य में तुम्हारे समान उत्तम रंभा भोर तिलोत्तमा भी नहीं है । मेनका, शची व पौलोमी ये सब अप्सरायें भी तुम्हारे वैभव के सामने निरभिमान हो जाती हैं । तुम्हारी बुद्धि की तुलना में सरस्वती भी पूरी नहीं उतरती ।
दृष्टान्त
जब पहले एक बात कहकर फिर उससे मिलती-जुलती बात उदाहरण के रूप में कही जाय अर्थात् दोनों के धर्म एक न होते हुए भी मिलते-जुलते हों अथवा दोनों कथनों में बिम्बप्रतिबिम्ब भाव हो तब दृष्टांत अलंकार होता है। कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं -
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रहसे सीसु परिच्चएवि जरपरिंगवु कज्जु पउ किम्जइ । वरसुवाकलसहो उवरि ढंकणु कि arre बिज्जइ ॥ 8.6
प्रावेग में श्राकर शील को छोड़ जननिन्द्य कार्य नहीं करना चाहिए । उत्तम सुवर्ण के कलश पर क्या खप्पर ( ठीकरा ) का ढक्कन दिया जाता है ।
• सप्पुरिस हो मारणसु गहिरु विहरे वि रग जाय कायरु ।
किं सुरमहणारंभ हुए मज्जाय पमेल्लइ सायद ।। 8.23
सत्पुरुष गम्भीर होता है। वह विपत्ति में भी कायर नहीं होता । क्या सुरों द्वारा मंथन प्रारम्भ होने पर सागर मर्यादा छोड़ देता है ?
नवसु वि वसि कज्जइ जं रुच्चइ,
विसभए कि फरिणमरिण सुबइ । 8.21.11
जो रुचे उसे पराधीन होने पर भी वश में करना चाहिए। विष के भय से नागमणि को छोड़ देना उचित नहीं ।
महारायराम्रो, रग तुल्लो किराम्रो ।
किमालोलजहो, सिप्रालस्स सीहो । 10.5.13-14
तुम महाराजानों के भी राजा हो । यह किरात तुम्हारे समान नहीं । क्या कोई सिंह क्रोध से जीभ लपलपाता हुआ एक स्यार पर प्राक्रमण करता है ।
उदाहरण
जब एक बात कहकर उसके उदाहरण के रूप में एक दूसरी बात कही जाय मोर दोनों कथनों को ज्यों, जिमि, जेम, जिह, तिह आदि किसी उपमावाचक शब्द से जोड़ दिया जाय तो उदाहरण अलंकार होता है । सुदंसणचरिउ में इस अलंकार के कुछ नमूने इस प्रकार हैं -
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दुखहो भरियउ जिह घड़ सुरबिंदु विरगासइ ।
तिहि रिसि असणं तवहो महाफल गासह । 6.10.15
जिस प्रकार दूध से भरे हुए घट को सुरा का एक बिन्दुमात्र विनष्ट कर डालता है उसी प्रकार रात्रिभोजन तप के महाफल को समाप्त कर देता है ।
सुसरण देवहो अभयदेवि वम्मा लिया ।
सरम्मि जिह पोमिरगी गयवरेण विद्धंसिया ।। 8.37.7-8